पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/२६६

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पदमावत

८४ जोगी बार आाव सो, जेहि भिच्छा के आास । जो निरास दिढ़ शासनकित गौने केहु पास ?” ॥ ३ ॥ सुनि बसीट मन उपनी रीसा । जौ पीसत न जाइहि पीसा । जोगी अस कॉं कहै न कोई । सो कह होई । बात जोग जो । वह बड़ राज इंद्र कर पाटा। धरती परा सरग को चाटा ? ॥ जो यह बात जाइ तहूँ चली। छूटहि अबहि हस्ति सिंघली ॥ औौ ज खुटह बच कर गोटा। विसरिहि भु ति, होइ सव रोटा। जह कह दिस्टि न जाइ पसारी। तहाँ पसारसि हाथ भिखारी ॥ आगे देखि पाँव ध, नाथा। तहाँ न हेरु ट जहें माथा । वह रानी तेहि जोग है, जाहि राज औ पार्ट्स । सुंदर जाइहि राजघर, जोगिहि बाँदर काटु ।। ४ ॥ जीं जोगी सत बाँदर काटा। ए जोग, न दूसरि बाटा ॥ औौर साधना श्रावें साधे। जोग साधना श्रापुहि दाधे सरि पहुँचाव जोगि कर सायूं। दिस्टि चाहि अगमन होई हाथ ॥ तुम्हरे जोर सिंघल के हाथी। हमरे हस्ति गुरू हैं साथी । स्ति नास्ति घोहि करत न बारा। परबत करे पाँव के छारा ॥ जोर गिरे गढ़ जावत भए। जे गढ़ गरब कर्राहि ते नए ॥ अंत क चलना कोइ न चीन्हा। जो आावा सो आापन कीन्हा ॥ जोगिहि कोइ न चाहिय, तस न मोहि रिसि लागि । जोग तंत ज्यों पानी, काह करे तेहि आगि ? ॥ ५ ॥ बसिठन्ह जाइ कही अस बाताराता ॥ । राजा सुनत कोह भा ठावह ठाँव कुंवर सब भाखे । केइ अब लीन्ह जोगकेइ राखे ? ॥ निरासा = आाशा या कामना से रहित । (४) धरती परा ’ - ‘चाटा =धरती पर पड़ा हुआा कौन स्वर्ग या नाकाश चाटता है ? कहावत है --‘रहे भूई, नौ चा बादर'। गोटा = गोला । रोटा = दबकर गधे ग्राँटे को बेली रोटी के समान । बॉदर काट = बंदर काटे, मुहाविराअर्थात् जोगी का बुरा हो, जोगी चूल्हे में जाय।(५सत = सौ । सु िपहुँचाव = बराबर या ठिकाने पहुँचा देता है। दिस्टि चाहि- हाथ = दृष्टि पहुँचने के पहले ही योगी का हाथ पहुँच जाता है। दूती यह के उस बात के उत्तर में है । "जद केह दिस्टि न जाड़ पसारी । तहाँ पसारसि हाथ भिखारी ।" चाहि = अपेक्षा, बनिस्बत । नए = नम्र हुए। । १. एक हस्तलिखित प्रति में इसके ग्रागे ये चाइयाँ हैं राजा तोर हरित कर साईं । मोर जीव यह एक गोसाई ॥ करकर है जो पाँव तर बारू। तेहि उठाइ के क रै पहारू ॥ राज करत तेहि भीख मंगालैं। भीख माँग तेहि राज दिखाव l मंदिर ढfiह उठाव नए । गढ़ करि गरव खेह मिलि गए !