पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/२७

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निजामुद्दीन औलिया (मृत्यु सन् १३२५ ई°)
 
 
सिराजुद्दीन
 
 
शेख अलाउल हक
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
(जायस)
 
 
 
 
 
 
 
 
 
शेख कुतुब आलम (पंडोई के, सन् १४१५)x
 
 
 
 
शेख हशमुद्दीन (मानिकपुर)x
 
 
 
 
सैयद राजे हामिदशाहx
 
 
 
 
शेख दानियाल
 
 
 
 
 
 
सैयद मुहम्मद
 
 
 
 
सैयद अशरफ जहाँगीर
शेख अलहदाद
 
 
 
 
शेख हाजी
शेख बुरहान (कालपी)
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
शेख मोहिदी (मुहीउद्दीन)शेख मुहम्मद या मुबारकशेख कमाल

'पदमावत' और 'अखरावट' दोनों में जायसी ने मानिकपुर कालपीवाली गुरुपरंपरा का उल्लेख विस्तार से किया है, इससे डाक्टर ग्रियर्सन ने शेख मोहिदी को ही उनका दीक्षा गुरु माना है। गुरुवंदना से इस बात का ठीक ठीक निश्चय नहीं होता कि वे मानिकपुर के मुहीउद्दीन के मुरीद थे अथवा जायस के सैयद अशरफ के। पदमावत में दोनों पीरों का उल्लेख इस प्रकार है—

सैयद असरफ पीर पियारा। जेइ मोहिं पंथ दीन्ह उजियारा।
गुरु मोहिदी खेवक मैं सेवा। चलै उताइल जेहि कर खेवा।

अखरावट में इन दोनों की चर्चा इस प्रकार है—

कही सरीअत चिस्ती पीरू। उधरी असरफ औ जहँगीरू।
पा पाएउँ गुरु मोहिदी मीठा। मिला पंथ सो दरसन दीठा।

'आखिरी कलाम' में केवल सैयद अशरफ जहाँगीर का ही उल्लेख है। 'पीर' शब्द का प्रयोग भी जायसी ने सैयद अशरफ के नाम के पहले किया है और अपने को उनके घर का बंदा कहा है। इससे हमारा अनुमान है कि उनके दीक्षागुरु तो थे सैयद अशरफ पर पीछे से उन्होंने मुहीउद्दीन की भी सेवा करके उनसे बहुत कुछ