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पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/२७२

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(२४) गंधर्वसेन मंत्री खंड

राजै सुनि जोगी गढ़ चढ़े। पूछै पास जो पंडित पढ़े॥
जोगी गढ़ जो सेंधि दै आवहि। बोलहु सबद सिद्धि जस पावहि॥
कहहिं बेद पढ़ि पंडित बेदी। जोगि भौंर जस मालति भेदी॥
जैसे चोर सेंधि सिर मेलहिं। तस ए दुवौ जीउ पर खेलहिं॥
पंथ न चलहिं वेद जस लिखा। सरग जाए सूरी चढ़ सिखा॥
चोर होइ सूरी पर मोखू। देइ जौ सूरि तिन्हहि नहिं दोखू॥
चोर पुकारि बेधि घर मूसा। खेलै राजभँडार मंजूसा॥
जस ए राजमँदिर महँ, दीन्ह रैनि कहँ सेंधि॥
तस छेंकहु पुनि इन्ह कहँ, मारहु सूरी बेधि॥ १ ॥
राँध जो मंत्री बोले सोई। ऐस जो चोर सिद्धि पै कोई॥
सिद्ध निसंक रैनि दिन भवँही। ताका जहाँ तहाँ अपसवहीं॥
सिद्ध निडर अस अपने जोवा। खड़ग देखि के नावहिं गोवा ॥
सिद्ध जाइ पै जिउबध जहाँ। औरहि मरन पंख अस कहाँ? ॥
चढ़ा जो कोपि गगन उपराहीं। थोरे साज मरै सो नाहीं॥
जंबुक जूझ चढै जौ राजा। सिंघ साज कै चढ़ै तो छाजा॥
सिद्ध अमर, काया जस पारा। छरहिं मरहिं बर जाइ न मारा॥
छर ही काज कृस्न कर, राजा चढ़ै रिसाइ।
सिद्धगिद्ध जिन्ह दिस्टि गगन पर; बिनुछर किछु न बसाइ॥ २ ॥
अबहीं करहु गुदर मिस साजू। चढ़हिं बजाइ जहाँ लगि राजू॥
होहिं सँजोबल कुँवर जो भोगी। सब दर छेंकि धरहिं अब जोगी।
चौबिस लाख छत्रपति साजे। छपन कोटि दर बाजन बाजे॥
बाइस सहस हस्ति सिंघली। सकल पहार सहित महि हली॥
जगत बराबर वै सब चाँपा। डरा इंद्र, बासुकि हिय काँपा॥
पदुम कोट रथ साजे आवहिं। गिरि होइ खेद गगन कहँ धावहिं॥
जनु भुइँचाल चलत महि परा। टूटी कमठ पीठि, हिय डरा॥


(१) सबद = व्यवस्था। सरग जाए = स्वर्ग जाना (अवधी)। सूरि सूली। (२) राँध = पास, समीप। भवँहीं = फिरते हैं। अपसवहीं = जाते हैं। मरनपंख = मृत्यु के जैसे चोंटों को जमते हैं। पारा = पारद। छरहिं = छल से, युक्ति से। बर = बल से। (३) गुदर = राजा के दरबार में हाजिरी, मोजरा; अथवा पाठांतर 'कदरमस' युद्ध। सँजोवल = सावधान। दर = दल, सेना। बराबर चाँपा = पैर से रौंद कर समतल कर दिया। । भुइँचाल = भूचाल, भूकंप।