पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/३०६

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१२४
पदमावत

१२४ पदमावत चालू मरम में जाना सोई। जस पियार पिउ ऑौर न कोई ॥ डर तो लगि हिय मिला न पोऊ। भानु के दिस्टि यूटि गा सीऊ ॥ जत खन भानु कोन्ह परगासू । कंवल कली मन कोन्ह बिगास ॥ हिये छोह उपना ऑौ सोऊ। पिउ न रिसाउ लेड बरु जोऊ ॥ हत जो पार बिरह दुख दुखा । जनm गस्त उदय जल सूखा ॥ हीं रेंग बहुईं मानति, लहरें जैस समुंद। पे पि चतुराईखसेउ न एक द । करि सिंगार तापतें का जाऊँ। श्रोहो देखतें ठाँवहि टाँ । जो जिड सँह तो उहै पियारा । तन मन सीं नहि होइ निनारा ॥ नन माह उह समाना। देखौ नाहि थाना तहा काउ । ग्रापन रस चापुहि पै लेई । अधर सोइ लागे रस देई ॥ हिया थार कुच कंचन लाडू । अगमन भेंट दीन्ह के चाँड़ ॥ हुलसी लंक लंक सीं लसी। रावन रहसि कसौटी कसी ॥ जोबन सवें मिला नोहि जाई । हों रे बोच त गइकें हेराई ॥ जस कि देइ धरे कहूँआपन लेइ सँभारि। रहसि गारि तस लोन्हेसि, कीन्हेसि मोहि ठ्ठारि ।४० अनु रे लचीली ! तोहि वि लागी। नैन गुलाल खेत सेंग जागी । चंप सुदरसन स भा सोई। सोजरद जस केसर होई ।। बैठ भौंर कुच नारंग बारी । लागे नखउछरों रंग धारी ॥ अधर मधर सों भी तमोरा। लकाउर मुरि मुरि गा तोरा । रायमुनी तुम औ रतमुही। लिमुख लागि भई फुलहीं ॥ जैस सिगार हार सौं मिलो। मालर्तित ऐति सदा रहु किलो ॥ मुनि सिंगार करु कला नवारो। कदम सेवती बैड पियारी ॥ कुंद कलो सम विगसो, ऋतु वसंत श्र श्री फाग । फूलहु फरहु सदा सुख, ऑो सुख सुफल सोहाग ।४१ ]॥ कहि यह बात सखी सब धाई। पावति पद जाइ सुनाई । नाजु निग पदमावति बारी । जीवन जान, पवन प्रधारी ॥ दूखा = नष्ट हुया । ख से उ=गरा । (४०) चाँड , = चाह । जस कि देश धरे कहें = जैसे कोई वस्तु धरोहर रखे श्रौर फिर उसे सहेजकर ले ले । टठfर = खुख । (४१) चंप मु दरसनहोई = तेरा वह अंदर चंपा का सा रंग जर्द चमेली सा पीला हो गया है । उरी = पड़ी हुई दिखाई पड़ीं । धारी = रेखा । तमोरा = ताल । अलकाउर=अलकावलि । तोरा = तेरा । फुलसुंधनो रायमुनी = नाम एक छोटी की छटी सुंदर चिड़िया चिड़िया । । रतमुहीं संगरहार =लाल (कमुँहवाली ) सिंगार । फूलचूहीं कैो अस्त : व्यस्त करनेवाला, नायक। (ख) परजाता ल । (४१) कला = नकलबाजी बहाना (अवधो)। नेवारो= (क) दूर कर।"(ख) एक फूल। कदम सेवती = (क) चरणों को सेवा करती हुई। (ख) कदंब और सेवती लैं। (मुद्रा अलंकार)।