पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/३०७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पदमावती रत्नसेन भट खड १२५ तरकि तरकि गड चंदन चोली। धरकि धकि हिय उठं न बोली ॥ अही जो कली फेवल रसपूरी । चूर चूर होइ गईं सो चूरी ॥ देखहु जाइ जैसि कुंभिलानी। सुनि सोहाग रानी बिहँसानी ॥ सेइ सेंग सबही पदमिन नारी। आई जहें पदमावति बारी श्राइ रूप सो सबही देखा। सोनबरन होइ रही सो रेखा कुसुम फूल जस मरदनिरंग देख सब अंग चंपावति" भइ वारी, चूम केस ऑ मंग ।।४३ सब रनिवास बैठ चहें पासा। सैसि मंडल ज, बैठ अकाता ॥ बोलीं सबै ‘बारि कुंॉभिलानी करहु सँभार, देहु धूड़वानी ॥ कंवल कलो कोमल रंग भीनी । अति सूकुमारी, लंक के छीनी। चाँद जैस धनि हत परगासा। सहस करा होइ सूर बिगासा ॥ तेहिके झार गहन अस गहो। भई निरंगमुख जौति न रही। दब बारि किए पुन्नि करेढूं। औौ तेहि लेइ संन्यासिहि देहू । जोतौ भरि के थार कीन्ह चंद ) नखत गजमोती : वारा के ।। कीन्ह घरगजा मरदन; औी सखि कीन्ह नहानु । पुनि भइ चौदस चाँद सो, रूप गएड छपि भानु l४३। पुनि बहु चीर आन सब छोरी । सारी कंचु कि लहर पटोरी। दिया छायल औौर कसनिया राती। बँद लाए गुजराती ॥ चोर मोना लोने । मोति लाग ऑौ छापे सोने ॥ सुरंग चीर भल सिंघलदीपी। कोन्ह जो छापा धनि वह छीपी ॥ पर्चा या औौ चौधरी सामसेतपीयरहरियारी सात रंग औौ चित्र चितेरे। भरि के दोटि जाहि नहि हेरे। , Tलमल क सारा I। पुनि प्रभरन बहु काढ़ा, अनबन मोति जराव । हरि फेरि निति" जब जैसे मन भाव 1४४। । पहिरै, (४३, बदरंग । पवन अधारी = इतनी सुकुमार है कि ) निरंग = विव पवन ही के आधार पर मानों जोवन है । अहो = थी । सोनबरन - रेखा = ऊपर कह झाए हैं कि ‘रावन रहसि कसौटी कसी'। वारी भइ=निछावर हुई। मंग= () ज्वाला, तेज । वारि = निछावर करके। वारा माँग । ४६झार = कीन्ह किया । () = चारों ओोर व माकर उत्सर्ग ४४लहर पटोरो=पुरानी चाल का रेशमी लहरिया कपड़ा फंदिया = नीवी या इजारबंद के फुलरे कसनिया = कसनो, एक प्रकार की गुंगिया। छायल=एक प्रकार की कुरती। चकवा = चिकट नाम का रेशमी कपड़ा । मघौना = मेघवर्ण अथत नील का रंगा कपड़ा । पेमचा = एक प्रकार का कपड़ा (? ) । चौधारो = चारखाना । हरियारी = हरी। चितेरे = चित्रित । चंदनौता एक प्रकार का लगा । खरदुक - कोई पहनावा (? )। बाँसपूर = ढाके को बहुत महीन तंजेब जिसका थान बाँस की पतलो नली में श्रा जाता था। झिलमिल =एक बारीक कपड़ा । अनबन अनेक