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पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/३१

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जब राजा ने लौटकर सूए को न देखा तब उसने बड़ा कोप किया। अंत में हीरामन उसके सामने लाया गया और उसने सब वृत्तांत कह सुनाया। राजा की पद्मावती का रूपवर्णन सुनने की बड़ी उत्कंठा हुई और हीरामन ने उसके रूप का बड़ा लंबा चौड़ा वर्णन किया। उस वर्णन को सुन राजा वेसुध हो गया। उसके हृदय में ऐसा प्रवल अभिलाष जगा कि वह रास्ता बताने के लिये हीरामन को साथ ले जोगी होकर घर से निकल पड़ा।

उसके साथ सोलह हजार कुँवर भी जोगी होकर चले। मध्यप्रदेश के नाना दुर्गम स्थानों के बीच होते हए सब लोग कलिंग देश में पहुँचे। वहाँ के राजा गजपति से जहाज लेकर रत्नसेन ने और सब जोगियों के सहित सिंघलद्वीप को ओर प्रस्थान किया। क्षार समुद्र, क्षीर समुद्र, दधि समुद्र, उदधि समुद्र, सुरा समुद्र और किलकिला समुद्र को पार करके वे सातवें मानसरोवर समुद्र में पहुँचे जो सिंघल द्वीप के चारों ओर है। सिंघलद्वीप में उतरकर जोगी रत्नसेन तो अपने सब जोगियों के साथ महादेव के मंदिर में बैठकर तप और पद्मावती का ध्यान करने लगा और हीरामन पद्मावती से भेंट करने गया। जाते समय वह रत्नसेन से कहता गया कि बसंत पंचमी के दिन पद्मावती इसी महादेव के मंडप में बसंतपूजा करने आएगी; उस समय तुम्हें उसका दर्शन होगा और तुम्हारी आशा पूर्ण होगी।

बहुत दिन पर हीरामन को देख पद्मावती बहुत रोई। हीरामन ने अपने निकल भागने और बेचे जाने का वृत्तांत कह सुनाया। इसके उपरांत उसने रत्नसेन के रूप, कूल, ऐश्वर्य, तेज आदि को बड़ी प्रशंसा करके कहा कि वह सब प्रकार से तम्हारे योग्य वर है और तुम्हारे प्रेम में जोगो होकर यहाँ तक आ पहुँचा है। पद्मावती ने उसकी प्रेमव्यथा को सुनकर जयमाल देने की प्रतिज्ञा की और कहा कि बसंत पंचमी के दिन पूजा के बहाने मैं उसे देखने जाऊँगी। सूआ यह सब समाचार लेकर राजा के पास मंडप में लौट आया।

बसंत पंचमी के दिन पद्मावती सखियों के सहित मंडप में गई और उधर भी पाँची जिधर रत्नसेन और उसके साथी जोगी थे। पर ज्योंही रत्नसेन की आँखें उसपर पड़ी, वह मुर्छित होकर गिर पड़ा। पद्मावती ने रत्नसेन को सब प्रकार से वैसा ही पाया जैसा सूए ने कहा था। वह मुर्छित जोगी के पास पहुँची और उसे दोश में लाने के लिये उसपर चंदन छिड़का। जब वह न जागा तब चंदन से उसके हदय पर यह बात लिखकर वह चली गई कि 'जोगी, तूने भिक्षा प्राप्त करने योग्य योग नहीं सीखा, जब फलप्राप्ति का समय आया सब तू सो गया।'

राजा को जब होश आया तब वह बहुत पछताने लगा और जल मरने को तैयार हुआ। सब देवताओं को भय हुआ कि यदि कहीं यह जला तो इनको घोर विरहाग्नि से सारे लोक भस्म हो जायेंगे। उन्होंने जाकर महादेव पार्वती के यहाँ पूकार की। महादेव कोढी के वेश में बैल पर चढ़े राजा के पास आए और जलने का कारण पूछने लगे। इधर पार्वती की, जो महादेव के साथ आई थीं, यह इच्छा हुई कि राजा के प्रेम की परीक्षा लें। वे अत्यंत सुंदरी अप्सरा का रूप धरकर पाई और बोलीं मझे इंद्र ने भेजा है। पद्मावती को जाने दे, तुझे अप्सरा प्राप्त हुई। रत्नसेन ने कहा 'मझे पद्मावती को छोड़ और किसी से कुछ प्रयोजन नहीं।' पार्वती ने महादेव से कहा कि रत्नसेन का प्रेम सच्चा है। रत्नसेन ने देखा कि इस कोढ़ी की छाया