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पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/३२

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नहीं पड़ती है, इसके शरीर पर मक्खियाँ नहीं बैठती हैं और इसकी पलकें नहीं गिरती हैं अतः यह निश्चय कोई सिद्ध पुरुष है। फिर महादेव को पहचानकर वह उनके पैरों पर गिर पड़ा। महादेव ने उसे सिद्धि गुटिका दी और सिंघलगढ़ में घुसने का मार्ग बताया। सिद्धि गुटिका पाकर रत्‍नसेन सब जोगियों को लिए हुए सिंघलगढ़ पर चढ़ने लगा।

राजा गंधर्वसेन के यहाँ जब यह खबर पहुँची तब उसने दूत भेजे। दूतों से जोगी रत्नसेन ने पद्मिनी के पाने का अभिप्राय कहा। दूत क्रुद्ध होकर लौट गए। इस बीच हीरामन रत्‍नसेन का प्रेमसंदेश लेकर पद्मावती के पास गया और पद्मावती का प्रेम भरा संदेसा पाकर उसने रत्‍नसेन से कहा। इस संदेसे से रत्‍नसेन के शरीर में और भी बल आ गया। गढ़ के भीतर जो अगाध कुंड था वह रात को उसमें धँसा और भीतरी द्वार को, जिसमें वज्र के किवाड़ लगे थे, उसने जा खोला। पर इसी बीच सवेरा हो गया और वह अपने साथी जोगियों के सहित घेर लिया गया। राजा गंधर्वसेन के यहाँ यह विचार हुआ कि जोगियों को पकड़कर सूली दे दी जाय। दल बल के सहित सब सरदारों ने जोगियों पर चढ़ाई की। रत्‍नसेन के साथी युद्ध के लिये उत्सुक हुए पर रत्‍नसेन ने उन्हें यह उपदेश देकर शांत किया कि प्रेममार्ग में क्रोध करना उचित नहीं। अंत में सब जोगियों सहित रत्‍नसेन पकड़ा गया। इधर यह सब समाचार सुन पद्मावती की बुरी दशा हो रही थी। हीरामन सूए ने जाकर उसे धीरज बँधाया कि रत्‍नसेन पूर्ण सिद्ध हो गया है, वह मर नहीं सकता।

जब रत्‍नसेन को बाँधकर सूली देने के लिये लाए तब जिसने जिसने उसे देखा सबने कहा कि यह कोई राजपुत्र जान पड़ता है। इधर सूली की तैयारी हो रही थी, उधर रत्‍नसेन पद्मावती का नाम रट रहा था। महादेव ने जब जोगी पर ऐसा संकट देखा तब वे और पार्वती भाँट भाँटिनी का रूप धरकर वहाँ पहुँचे। इसी बीच हीरामन सुआ भी रत्‍नसेन के पास पद्मावती का यह संदेसा लेकर आया कि 'मैं भी हुथेला पर प्राण लिए बैठी हूँ, मेरा जीना मरना तुम्हारे साथ है।' भाँट (जो वास्तव में महादेव थे) ने राजा गंधर्वसेन को बहुत समझाया कि यह जोगी नहीं राजा है और तुम्हारी कन्या के योग्य वर है, पर राजा इसपर और भी क्रुद्ध हुआ। २० जोगियों का दल चारों ओर से लड़ाई के लिये चढ़ा। महादेव के साथ हनुमान् आदि सब देवता जोगियों की सहायता के लिये आ खड़े हुए। गंधर्वसेन की सेना के हाथियों का समूह जब आगे बढ़ा तब हनुमान जी ने अपनी लंबी पूंछ में सबको लपेटकर आकाश में फेंक दिया। राजा गंधर्वसेन को फिर महादेव का घंटा और विष्णु का शंख जोगियों की ओर सुनाई पड़ा और साक्षात् शिव युद्धस्थल में दिखाई पड़े। यह देखते ही गंधर्वसेन महादेव के चरणों पर जा गिरा और बोला 'कन्या आपकी है, जिसे चाहिए उसे दीजिए'। इसके उपरांत हीरामन सुए ने आकर राजा रत्‍नसेन के चित्तौर से आने का सब वृत्तांत कह सुनाया और गंधर्वसेन ने बड़ी धूमधाम से रत्‍नसेन के साथ पद्मावती का विवाह कर दिया। रत्‍नसेन के साथी जो सोलह हजार कुँवर थे उन सबका विवाह भी पद्मिनी स्त्रियों के साथ हो गया और सब लोग बड़े आनंद के साथ कुछ दिनों तक सिंहल में रहे।

इधर चित्तौर में वियोगिनी नागमती को राजा की बाट जोहते एक वर्ष हो