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(३७) रत्नसेन संतति खंड
जाएउ नागमती नगसेनहि। ऊँच भाग, ऊँचे दिन रैनहि॥
कवँलसेन पदमावति जाएउ। जानहुँ चंद धरति महँ आएहुँ॥
पंडित बहु बुधिवंत बोलाए। रासि बरग औ गरह गनाए॥
कहेन्हि बड़े दोउ राजा होहीं। ऐसे पूत होहिं सब तोहीं॥
नवौ खंड के राजन्ह जाहीं। औ किछु दुंद होइ दल माहीं॥
खोलि भंडारहि दान देवावा। दुखी सुखी करि मान बढ़ावा॥
जाचक लोग, गुनीजन आए। औ अनंद के बाज बधाए॥
बहु किछु पावा जोतिसिन्ह औ देइ चले असीस।
पुत्र, कलत्र, कुटुंब सब, जीवहिं कोटि बरीस॥ १ ॥
(१) जाएउ = उत्पन्न किया, जना। ऊँचे दिन रैनहि = दिन रात में वैसा ही बढ़ता गया। दुंद = झगड़ा, लड़ाई।