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पदमावत

कुच सों कुच भइ सोहैं अनी। नवहिं न नाए, टूटहिं तनी॥
कुंभस्थल जिमि गल मैमंता। दूबौ आइ भिरे चौदंता॥
देवलोक देखत हुत ठाढ़े। लगे बान हिय, जाहिं न काढे॥

जनहुँ दीन्ह ठगलाडू, देखि आइ तस मीचु॥
रहा न कोइ धरहरिया करै दुहुँन्ह महँ बीचु॥ १२ ॥

 

पवन स्त्रवन राजा के लागा। कहेसि लड़हि पदमिनि औ नागा॥
दूनौ सवति साम औ गोरी। मरहिं तौ कहँ पावसि असि जोरी॥
चलि राजा आवा तेहि बारी। जरत बुझाई दूनौ नारी॥
एक बार जेइ पिय मन बूझा। सो दुसरे सों काहे क जूझा? ॥
अस गियान मन आव न कोई। कबहूँ राति, कबहुँ दिन होई॥
धप छाँह दोउ पिय के रंगा। दूनौ मिली रहहिं एक संगा॥
जूझ छाँड़ि अब बूझहु दोऊ। सेवा करहु सेव फल होऊ॥

 गंग जमुन तुम नारि दोउ, लिखा हम्मद जोग।
सेव करहु मिलि दूनौ, तौ मानहु सुख भोग ॥ १३ ॥

 

 अस कहि दूनौ नारि मनाई। बिहँसि दोउ तव कंठ लगाई॥
लेइ दोउ सग मँदिर महँ आाए। सोन पलँग जहँ रहे बिछाए॥
सीझी पाँच अमृत जेवनारा। औ भोजन छप्पन परकारा॥
हुलसीं सरस खजहजा खाई। भोग करत बिहँसी रसनाई॥
सोन मँदिर नगमति कहँ दीन्हा। रूप मँदिर पदमावति लीन्हा॥
मंदिर रतन रतन के खंभा। बैठा राज जोहारै सभा॥
सभा सो सबै सुभर मन कहा। सोई अस जो गुरु भल कहा॥

 बहु सुगंध, बहु भोग सुख, कुरलहिं केलि कराहिं।
दुहुँ सौं केलि नित मानै, रहस अनँद दिन जाहिं॥ १४ ॥

 

अनी = नोक। तनी = चोली के बंद। चौदंता = स्याम देश का एक प्रकार का हाथी; अथवा थोड़ी अवस्था का उद्दंड पशु (बैल, घोड़े आदि के लिये इस शब्द का प्रयोग होता है)। ठगलाड़ू = ठगों के लड्डू जिन्हें खिलाकर वे मुसाफिरों को बेहोश करते हैं। धरहरिया = झगड़ा छुड़ानेवाला। बीचु करै = दोनों को अलग करे, झगड़ा मिटाए।