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पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/३८३

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राजा बादशाह युद्ध खंड

स्वामि काज जा जूझै, सोइ गए मुख रात।
जो भागे सत छाँड़ि कै मसि, मुख चढ़ी परात॥ ३ ॥

 

भा संग्राम न भा अस काऊ। लोहे दुहुँ दिसि भए अगाऊ॥
सीस कंध कटि कटि भुइँ परे। रुहिर सलिल होइ सायर भरे॥
अनंद बधाव करहिं मसखावा। अब भख जनम जनम कहँ पावा॥
चौंसठ जोगिनि खप्पर पूरा। बिग जंबुक घर बाजहिं तूरा॥
गिद्ध चील सब माँड़ो छावहिं। काग कलोल करहिं औ गावहिं॥
आजु साह हटि अनी वियाही। पाई भुगुति जैसि चित्त चाही॥
जेइँ जस माँसू भखा परावा। तस तेहि कर लेइ औरन्ह खावा?

काहू साथ न तन गा, सकति मुए सब पोखि॥
ओछ पूर तेहि जानब, जो थिर आवत जोखि॥४॥

 

चाँद न टरै सूर सौं कोपा। दूसर छत्र सौंह के रोपा॥
सुना साह अस भएउ समूहा। पेले सब हस्तिन्ह के जूहा॥
आज चाँद तोर करौं निपातू। रहै न जग महँ दूसर छातू॥
सहस करा होइ किरिन पसारा। छेका चाँद जहाँ लगि तारा॥
दर लोहा दरपन भा आवा। घट घट जानहु भानु देखावा॥
अस क्रोधित कुठार लेइ धाए। अगिनि पहार जरत जनु आए॥
खडग बीजु सब तुरुक उठाए। ओड़न चाँद काल[] कर पाए॥

जगमग अनी देखि कै, धाइ दिस्टि तेहि लागि।
छुए होइ जो लोहा, माँझ आव तेहि आगि ॥ ५ ॥

 

सूरुज देखि चाँद मन लाजा। बिगसा कँवल कुमुद भा राजा॥


(४) काऊ = कभी। लोहे = हथियार। अगाऊ = आगे, सामने। तुरा = तुरही। माँड़ौ = मंडप। अनी = सेना। सकति = शक्ति भर, भरसक। पोखि = पोषण करके। ओछ = ओछा, नीच। पूर = पूरा। जोखि आवति = विचारता आता है। जो थिर आवत जोखि = जो ऐसे शरीर को स्थिर समझता आता है। (५) चाँद = राजा। सूर = बादशाह। समूहा = शत्रुसेना की भीड़। छातू = छत्र। दर लोहा = सेना के चमकते हुए हथियार। ओड़न = ढाल, रोकने की वस्तु। ओड़न चाँद पाए = चंद्रमा के बचाव के लिये समयविशेष (रात्रि) मिला जब कि सूर्य सामने नहीं आता। जगमग = झलमलाती हुई। जगमग लागि = राजा ने गढ़ पर से बादशाह की चमकती हुई सेना को देखा। छुए आगि = यदि लोहा सूर्य के सामने होने से तप जाता है तो जो उसे छुए रहता है इससे शरीर में भी गरमी आ जाती है अर्थात् सूर्य के समान शाह की सेना का प्रकाश देख शस्त्रधारी राजा को जोश चढ़ आया। (६) कँवल = बादशाह। कुमुद = कुमुद के समान संकुचित।

  1. पाठांतर-—'कँवल'।