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पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/३९५

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बादशाह भोज खंड

भूंजि समोसा घिउ महँ काढ़े। लौंग मरिच जिन्ह भीतर ठाढ़े॥
ओर माँसु जो अनबन बाँटा। भए फर फूल, आम औ भाँटा॥
नारँग, दारिउँ, तुरँज, जँभीरा। औ हिंदवाना, बालमखीरा॥
कटहर बढ़हर तेउ सँवारे। नरियर, दाख, खजूर छोहारे॥
औ जावत जो खजहजा होहीं। जो जेहि बरन सवाद सो ओहीं॥
सिरका भेइ काढ़ि जनु आने। कवँल जो कीन्ह रहे बिगसाने॥
कीन्ह मसेवरा, सीझि रसोई। जो किछु सबै माँसु सौं होई॥

बारी आइ पुकारेसि, लीन्ह सबै करि छूँछ।
सब रस लीन्ह रसोई, को अब मोकहँ पूँछ॥ ६ ॥

 

काटे माछ मेलि दधि धोए। औ पखारि बहु बार निचोए॥
करुए तेल कीन्ह बसवारू। मेथी कर तब दीन्ह बघारू॥
जुगुति जुगुति सब माँछ बघारे। आम चोरि तिन्ह माँझ उतारे॥
ओ परेह तिन्ह चुटपुट राखा। सो रस सुरस पाव जो चाखा॥
भाँति भाँति सब खाँड़र तरे। अंडा तरि तरि बेहर धरे॥
घीउ टाँक महँ सोंध सेरावा। लौंग मरिच तेहि ऊपर नावा॥
कुहुँकुहुँ परा कपूर बसावा। नख तें बघारि कीन्ह अरदावा॥

घिरित परेह रहा तस, हाथ पहुँच लगि बूड़।
बिरिध खाइ नव जोबन, सौ तिरिया सौं ऊड़ ॥७॥

 

भाँति भाँति सीझीं तरकारी। कहउ भाँति कोहँड़न कै फारी॥
बने आनि लौआ परबती। रयता कीन्ह काटि रति रती॥
चूक लाइ कै रोधे भाँटा। अरुई कहँ भल अरहन बाटा॥


(६) ठाढ़े = खड़ी, समूची। भए पर...भाँटा = माँस ही अनेक प्रकार के फल फूल के रूप में बना है। हिदवाना = तरबूज, कलींदा। बालम खीरा = खीरे की एक जाति। खजहजा = खाने के फल। सिरका मेह...आने = मानो सिरके में भिगाए हुए फल समूचे आकर रखे गए हैं (सिरके में पड़े हुए फल ज्यों के त्यों रहते हैं)। मसेवरा = माँस की बनी चीजें। सोझि = पकी, सिद्ध हुई। बारी = काछी या माली। वारी आइ..छूँछ = माली ने पुकार मचाई कि मेरे यहाँ जो फल फूल थे सब तो मुझे खाली करके ले लिए गए अर्थात् वे सब माँस ही के बना लिए। (७) पखारि = धोकर। बसवारू = छौंक। परेह = रसा। चुटपुट = चुटपुटा। खाँड़र = कतले। तरि = तलकर। बेहर = अलग। टाँक = बरतन, कटोरा। सेरावा = ठंढा किया। नख = एक गंधद्रव्य। अरदावा = कुचला या भुरता। पहुँच = लगि पहुँचा या कलाई तक। ऊड़ = विवाह करे या रखे (ऊढ़)। (८) फारी = फाल, टुकड़े। लोआ = घीया, कद्दू। रयता = रायता। रती रती = महीन महीन। चूक = खटाई। सीधे = पकाए। अरहन = चने की पिसी दाल जो तरकारी में पकाते समय डाली जाती है; रेहन। बाटा = पीसा।