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पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/३९४

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पदमावत

देखत गोहूँ कर हिय फाटा। आने तहाँ होव जहँ आटा॥
तब पीसे जब पहिले धोए। कपरछानि माँड़े, भल पोए॥
चढ़ी कराही, पावहिं पूरी। मुखमहँ परत होहि सो चूरी॥
जानहुँ तपत सेत औ उजरी। नैनू चाहि अधिक वै कोंवरी॥
मुख मेलत खन जाहिं बिलाई। सहस सवाद सो पाव जो खाई॥
लुचुई पोइ पोइ घिउ मेई। पाछे छानि खाँड़ रस मेई॥
पूरि सोहारी कर घिउ चूआ। छुअत बिलाइ, डरन्ह को छूआ?॥

कहि न जाहिं मिठाई, कहत मीठ सुठि बात।
खात आघात न कोई, हियरा जात सेरात॥ ३ ॥

 

चढ़े जो चाउर वरनि न जाहीं। बरन बरन सब सुगँध बसाहीं।
रायभोग औ काजर रानी। झिनवा, रुदवा, दाउदखानी॥
बासमती, कजरी, रतनारी। मधुकर, ढेला, झीनासारी॥
घिउकाँदौ औ कुँवरबिलासू। रामबास आवै अति बासू॥
लौंगचूर लाची अति बाँके। सोनखरीका कपुरा पाके॥
कोरहन, बड़हन, जड़हन मिला। औ संसारतिलक खँड़बिला॥
धनिया देवल और अजाना। कहँ लगि बरनौं जावत धाना॥

सोधे सहस बरन, अस, सुगँध बासना छूटि।
मधुकर पुहुप जो बन रहे, आइ परे सब टूटि॥ ४ ॥

 

निरमल माँसु अनूप बघारा। तेहि के अब बरनौं परकारा॥
कटुवा, बटुवा मिला सुबासू। सीझा अनबन भाँति गरासू॥
बहुतै सोधे घिउ महँ तरे। कस्तूरी केसर सौं भरे॥
सेंधा लोन परा सब हाँड़ी। काटी कंदमूर कै आँड़ी॥
सोआ सौंफ उतारे घना। तिन्ह तें अधिक आव बासना॥
पानि उतारहिं ताकहिं ताका। घीउ परेह माहि सब पाका॥
औ लीन्हें माँसुन्ह के खंडा। लागे चुरै सो बड़ बड़ हंडा॥

छागर बहुत समूची, धरी सरागन्ह भूँजि।
जो अस जैवन जैंवे, उठै सिंघ अस गूँजि ॥ ५ ॥

 

(३) तपत = जलती हुई, गरम गरम। नैंनू = नवनीत, मक्खन। कोंवरी = कोमल। घिउ मेई = घी का मोयन दी हुई। कहत मीठ...बात = उनके नाम लेने से मुंह मीठा हो जाता है। (४) काजर रानी = रानी काजल नाम का चावल। रायभोग, झिनवा, रुदवा, दाउदखानी, बासमती कजरी, मधुकर, ढेला, झीनासारी, घिउकाँदो, कुँवर विलास, रामबास, लवँगचूर, लाची, सोनखरिका, कपूरी, संसारतिलक, खडबिला, धनिया, देवल चावलों के नाम। पुहुप = फूलों पर। (५) कटुवा = खंड खंड कटा हुजा। बटुआ = सिल पर बटा या पिसा हुआ। अनबन = विविध अनेक। गरासू = ग्रास, कौर। तरे = तले हुए। आँड़ी = अंटी, गाँठ। तावहि ताव = ताव देखते हैं। परेह = रसा, शोरबा। सरागन्ह = सिखचों पर शलाकाओं पर। गूँजि उठै = गरज उठे।