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पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४१३

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२३१
देवपाल दूती खंड

कहाँ सो रूप जगत सब राता। कहाँ सो गरब हस्ति जस माता॥
कहाँ सो, तीख नयन, तन ठाढ़ा। सबै मारि जोबन पन काढ़ा॥

अहमद बिरिध जो नइ चलै, काह चलै भुइँ टोइ।
जोबन रतन हेरान है, मकु धरती महँ होइ॥ ३ ॥

 

आइ कुमोदिनि चितउर चढ़ी। जोहन मोहन पाढ़त पढ़ी॥
पूछि लीन्ह रनिवास बरोठा। पैठी पवँरी भीतर कोठा॥
जहाँ पदमिनी ससि उजियारी। लेइ दुती पकवान उतारी॥
हाथ पसारि धाइ कै भेंटी। 'चीन्हा नहिं, राजा कै बेटी॥
हौं बाम्हनि जेहि कुमुदिनि नाऊँ। हम तुम उपने एकै ठाऊँ॥
नावँ पिता कर दूबे बेनी। सोई पुरोहित गँधरबसेनी॥
तुम बारी तब सिंघलदीपा। लीन्हे दूध पियाइउँ सीपा॥

ठाँव कीन्ह मैं दूसर, कुँभलनेरै आइ।
सुनि तुम्ह कहँ चितउर महँ, कहिउँ कि भेंठौं जाइ॥ ४ ॥

 

सुनि निसचै नैहर के कोई। गरे लागि पदमावति रोई॥
नैंन गगन रबि बिनु अँधियारे। ससि मुख आँसु टूट जनु तारे॥
जग अँधियार गहन धनि परा। कब लगि सखि नखतन्ह निसि भरा॥
माय बाप कित जनमी बारी। गीउ तूरि कित जन्म न मारी?॥
कित बियाहि दुख दीन्ह दुहेला। चितउर पंथ कंत बँदि मेला॥
अब एहि जियन चाहि भल मरना। भएउ पहार जन्म दुख भरना॥
निकसि न जाइ निलज यह जीउ। देखौं मँदिर सून बिनु पीऊ॥

कुहुकि जो रोई ससि नखत, नैन हैं रात चकोर।
अबहूँ, बोलैं तेहि कुहुक, कोकिल, चातक, मोर ॥ ५ ॥

 

कुमुदिनि कंठ लागि सुठि रोई। पुनि
लेइ रूपडार मुख धोई॥
तु ससि रूप जगत उजियारी। मुख न झाँपु निसि होइ अँधियारी॥
सुनि चकोर कोकिल दुख दुखी। घुँघुची भई नैन करमुखी॥
केतौ धाइ मरै कोइ बाटा। सोइ पावा जो लिखा लिलाटा॥


तन ठाढ़ा = तनी हुई देह। (४) जोहन मोहन = देखते ही मोहनेवाला। बरोठा = बैठकवाला। चीन्हा नहिं = क्या नहीं पहचाना? जेहि = जिसका। उपने = उत्पन्न हुए। लीन्हे = गोद में लिए। सींपा = सीप में रखकर शक्ति में। (इधर स्त्रियाँ छोटे बच्चों को ताल की सीपों में रखकर दूध पिलाती हैं क्योंकि उसका आकार चम्मच का सा होता है)। (५) नैहर = मायका, पीहर। नैन गगन = गगन नयन, नेत्र रूपी आकाश। जनमी = जनी, पैदा की। बारी = लड़की। तूरि = तोड़कर, मरोड़कर। जनम = जन्मकाल में ही। कंत बँदि = पति की कैद में। जियन चाहि = जीने की अपेक्षा। कुहुकि = कूककर। तेहि कुहुक = उसी कूक से, उसी कूक को लेकर। (६) सुठि = खूब। रूपडार = चाँदो का थाल या परात। केती = कितना ही।