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पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४२३

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(५१) पद्मावती गोरा बादल संवाद खंड


सखिन्ह बुझाई दगध अपारा। गइ गोरा बादल के बारा॥
चरन कँवल भुई जनम न धरे! जात तहाँ लगि छाला परे॥
निसरि आए छात्री सुनि दोऊ। तस काँँपे जस काँप न कोऊ॥
केस छोरी चरनन्ह रज झारा। कहाँ पाँव पदमावति धारा?॥
राखा आनि पाट सोनवानी। बिरह बियोगिनि बैठी रानी॥
दोउ ठाढ़ होइ चँवर डोलावहिं। माथे छात, रजायसु पावहिं॥
उलटि बहा गंगा कर पानी। सेवक बार आइ जो रानी॥
का अस कस्ट कोन्ह तुम्ह, जो तुम्ह करत न छाज।
अज्ञा होह बेगि सो, जीउ तुम्हारे काज'॥१॥
कही रोइ पदमावति बाता। नैनन्ह रकत दीख जग राता॥
उथल समुद जस मानिक भरे। रोइसि रुहिर आँसू तस ढरे॥
रतन के रंग नैन पै बारौं। रती रती के लोहू ढारौं॥
भँवरा ऊपर कँवल भवावौं। लेइ चलु तहाँ सूर जहूँ पावौ॥
हिय कै हरदि, बदन के लोहू। जिउ बलि देउँ सो सँवरि बिछोहू॥
परहिं आँसू जस सावन नीरू। हरियरि भूमि, कुसुंभी चीरू॥
चढ़ी भुअंगिनि लट लट केस। भइ रोवति जोगिन के भेसा॥
वीर बहूटी भइ चली, तबहुँ रहहि नहि आँसु॥
नैनहिं पंथ न सूझे, लागेउ भादौं मासु॥२॥

तुम गोरा बादल छँभ दोऊ। जस रन पारथ और न कोऊ॥
दुख बरखा अव रहै न राखा। मूल पतार, सरग भइ साखा॥
छाया रहो सकल महि पूरी। बिरह बेलि भइ बाढ़ि खजूरी॥
तेहि दुख लेत बिरिछ बन बाढ़े। सोस उघारे रोवहिं ठाढ़े॥


———————————— (१) बारा = द्वार पर। काँपे = चौंक पड़े। सोनवानी = सुनहरी। माथे छात = आपके माथे पर सदा छत्र बना रहे। बार = द्वार पर। का = क्या। तुम्ह न छाज = तुम्हें नहीं सोहता। (२) दीख = दिखाई पड़ा। राता = लाल। उथल = उमडता है। रुहिर = रुधिर। रंग = रंग पर। पै = अवश्य, निश्चय। भँवरा = रत्नसेन। कँवल = नेत्र (पद्मिनी के) । हरदि = कमल के भीतर छाते का रंग पीला होता है। बदन के लोहू = कमल के दल का रग रक्त होता है।

(३) खँभ = खंभे, राज्य के आधार स्वरूप। पारथ = पार्थ,अर्जुन। बरखा = वर्षा में। तेहि दुख लेत...बाढ़े = उसी दुख की बाढ़ को लेकर जंगल के पेड़ बढ़कर इतने ऊँचे हुए हैं।