२७६ आखरावट जो एहि रस के बाएँ भएड। तेहि कहें रस बिषभर होइ गएऊ ।। तेइ सब तजा अरथ बेवहारू। औ घर बार कुटुम परिवारू ॥ खीर खाँड़ तेहि मीट न लागे। उहै बार होड़ भिच्छा ! मांग । जस जस नियर होड़ वह देखें। तस तस जगत हिया महें !! लेख पुहमी देखि न लादे दोठी ! हे & नवें न नापनि पीटी ॥ दोहा छोड़ि देतु सब धंधा, कार्डि जगत सौ हाथ। घर माया कर छोडि कै, ध काया कर साथ ॥ साँई के , बह मानिक मुकृता भरे । मन चोरहि ऐसार, मुहमद तौ किए पाइंट . ।।२१। ता तप साधनु एक पथ लागे। करह सेब दिन राति, सभागे ! ॥ श्रोहि मन लावह, है न रूटा। छोड़ह भगरायह जग झठा ।। जब हंकार ठाकुर कर थाइहि। एक थी जिज रहै न पाइहि ॥ ऋतु बसंत सब खेल धमारी। दगला अस तन, चढ़ब घटारी : ! सोह सोझागिनि जाहि सोहाग। कंत मिले जो खेले फा ॥ के सिंगार सिर सेंर । सबहि मिलि खेले ॥ मेलें माइ चाँचरि श्री जो रहे गरब के गोरी। चट दुहाग, जस । जरें होरी ॥ दोहा खे लि लेह जस खेलना, ऊख नागि देई ल।। झुमरि रख़लहु भूमि के, पूजि मनोरा गाड़ ॥ सोरठा । कहाँ तें उपने ग्राह, सवि बधि हिरदय उपजिए ! पुनि कहूँ जाहि समाई, मुहमद सो खंड खोजिए ।२२। विषभर = = ईश्वर । बिषभरा । उहै बार उसी के द्वार परनियर होइ = से । नवपीठि = पथ्वी में शुछ ठ के पीठ । निकट हर झुकाता: काया कर अपनी काया खोज कर । पैसा । ध साथ के भीतर ढूंढने लिये अपनी नहीं घसा दे : मन चोरहि पैसा = मन रूपी चोर को उस दसवें द्वार में पहुँचा । (-‘चोर पैठ जम सेंधि सँवारी'--पदमावत : पार्वती महश ग्लड ) । मिलाइए (२२) को 1 तलावा । आइदि = ग्राएगा । श्रोहि = उस ईश्वर दगला - , ऊरता । ददगल शरीर ऐसा है। हंकार -- अटारी = पर कपडा मैला और जाना है । पर प्रियतम के महल पर । दुहाग = दुर्भाग्य । उख = शरीर या मन जिसमें संसार का रस रहता है। । लाइ । = । = जलाकर मनरा मनरा झूमक, एक , प्रकार के गीत । उपने = उपन्न हुए । उपजिए=उत्पन्न कीजिएलाइए। ।
पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४५८
दिखावट