पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४५७

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अरावट २७४ जेइ न चिन्हारी कीन्ह, यह जिउ जौ लहि पिंड महें। पुनि किए परै न चीन्हि, मुहमद यह जग धंध होइ 1१९। ढा ढा जो रकत पसेऊ। सो जानै एहि बात क भेजे ॥ हि कर ठकुर पहरे जागे । सो सेवक कस सोवं लाएं ? ॥ जो सेवक सौवें चिंतन देई । तेहि ठाकुर नहि मया करेई ॥ iइ अवतरि उन्ह कहूँ नहि चीन्हा। तेनु यह जनम बिरिथा कीन्हा ॥ यूंदे नेन जगत महें अवना । अंधझूध तैसे । गवना लेइ किए स्वाद जाग नहि पावा। भरा मास तेइ सोढं रॉवावा ॥ रहे नौंददुखभरम फिर तिन्ह । लपेटा। प्राइ कत, न भेंटा धाबत बीरें नि दिन, मरम सनेही साथ । तेहि परभयज बिहान जबरोड रोइ मीं ह।थ ॥ लछिमी सत में चेरि, लाल करे बहु मुख है । दीटेि न देखे फेरि, मुहमद राता प्रेम जो ।।२०॥ ना निसता जो आए न एहि विष किएऊ भएऊ । सो रसहि मारि । यह , थिर नाहीं । उठहि मेघ जेई जाइ बिलाहीं । संसार आठ चिन्हारी = जान पहचान । जो लहि = जब तक । पुनि किछु परे न चीन्हि = जब शरीर गौर ग्रात्मा का वियोग हो जायगा तब फिर अनेक रूपों का। ज्ञान नहीं रह जायगा, ईश्वर को नहीं पहचान सकेगा (जयसी बाह्य और अंतःकरण विशिष्ट मात्मा को ही ब्रह्मा के के परिचय योग्य समझते हैं यह बात ध्यान देने की है) । धंध = अंधकार । यह जग धंध होइ = यह संसार अंधकार हो जायगा अत् िइसके नाना रूप, जिन्हें ब्रह्म के स्वरूप का प्र कह गए हैं, तिरोहित हो जाएँगे। (२०) पसे = प्रस्वेद, पसीना । सोचे = सोने । लेइ पाया = इस जगत् में जाकर भी सचेत होकर नाना। में कि रूपों में ईश्वर के साक्षात्कार का स्वाद न लेने पाया । भरा मासरी गेंबावाड बरसात को भरनी का महीना (जिसमें बीज बोने का उद्योग करना उत्तम चाहिएतिन्ह = उन ईश्वर को। धावत बीते ) उसने सोकर खो दिया । साथ ८ खोज में इधर उधर दौड़ते रात दिन बीते औौर परम स्नेही प्रियतम जो (ईश्वर) साथ हो था, कहीं बाहर नहीं । लाल = लालसा। दी न = कितु जो ईश्वर के प्रेम में रंगा है वह लक्ष्मी की और फिरकर नहीं देखता। (२१) निसर्ताइस के रस या =बिना सत्य का। एहि रसहि म्र कर ससार सुख को । विष किएउ=ग्रपने लिये विप सा समझता है। ।