पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४६६

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२८४
अखरावट

२८४ अरावट ग्रामू मरे बिनु सरग न छूवा। ग्राँधर हहि, चाँद कहें ऊवा ? ॥ - '९ पानी महूँ जस बुल्ला, रास यह जग उतिराड़ । एकहि थावत देखिएएक है । जगत बिलाइ ॥ सारठा दीन्ह रतन बिधि नारि, नैन, चैनसरवन्न मुख । पुनि जग मेटिहि मारि, मुहमद तव पछिताव में 11 ३५ ॥ सा सांसा जौ लहि दिन चारो। ठाकुर से करि लेह चिन्हारी ॥ अंध न होह रहह, डिठियारा। चीन्हि लेह जो तोहि सँवारा ॥ पहले से जो ठाकुर कीजिय। रो से जनम मरन नहि छीजिय ॥ बाँह घि औो मेरी माँसू । सूखे भोजन करह गरासू ॥ दूधमांडू घिर कर न अहारू। राटी। सानि करह फरहा । एहि विवि काम घटावह काया । काम, क्रोधतिसनामत माया ॥ सब ठहु बजासन मारी। गहि सुखमना पिंगला नारी ॥ प्रे तंतु तस लाग रह, करह ध्यान चित बधि । पारस जैम अहेर , रहै सर साधि लाग , सर अपने कौतुक । लागि, उपजाएन्हि वह भांति के चोन्हि सो लेहुर्गा । ३६ जागि, मुहम्मद सोइ न खाइए ॥ ख़ खेलहूखेलह श्रोहि टा। मुनि का खेलई खेल समेटा ॥ कठिन खेल अंशु मार करा। हतन्ह खाइ फिरे सिर टकरा । मरन रखुल देखा , सो सा। हाई पतंग दोपक महें धंसा ॥ तन पतंग के भिरिग में नंगाई । सिद्ध होड सो जुग जुग ताई बिनु जिड़ दिए न पावे कोई। जो मरजिया अमर भा सोई नाम जो जामें चंदन पासा। चंदन धि तेहि होई पासा ॥ पाबन्द जाइ बलो सन भका। टेका। जी लहि जिउ तन, तौलहि ग्राषु मरे..वा बिना मरे स्वयं भी दिखाई देता (कहावत) । बुल्ला वल । टिहि मिटाबे गा, नष्ट कर देगा : (३६) चिन्हारी जान पहचान । डिटियार दष्टिवाला । जियन मरन जोवन मरण के चक्र में । ! छाfजय नष्ट हों। व जसन द्योग में एक ग्रसन। ना सुषुम्ना नाड!" तंतु तत्व। पारधि रो, शिकारो। (३७) ग्राहि भेंटा उसक संयोग या में । टकर, ठtर । तन अपना मिल टकरा पतंग.नाई जैसे पतंग स्वरूप छोड़ भौंग के रूप का हो जाता है। । बबली सन टेका बली का सहारा ले । वप, रूप। कया = काया में । भका