पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४७२

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अखरावट

२९ खरावट नवरस पह गुरु भीज, गुरु परसाद सो पिउ मिले । जामि उठे सो बीज, मुहमद सोई सहम बुंद 1 ४६ ॥ माया जरि अस चापुहि खोई। रहै न पाप, मैलि गई धोई ॥ ग दूसर भा सुनहि सुन्नू । कहें कर पापकहाँ कर पुन्नू ॥ जापुहि गुरू, आयु भा चेला । ग्राहि सव आय ग्रामू ग्रकला ।। अहै सो जोगी, अहै सो भोगी। मुहैं सो निरमल, अहै सो रोगी । अहै सो कड़वा, अहै सो मीठा । अहै सो आामिल, है सो सीठा ॥ वे श्रापुहि कह सत्र महें मेला। रहै सो सब महें खेले खेला। उहै दोउ मिलि एक भए । बात करत दूसर होइ गएऊ । जो कि है सो है सव, मोहि बिनु नाहिन कोई ॥ जो मन चाहा सो किया, जो चाहे सो होइ ॥ सोरठा एक से दूर नहिं, बाहर भीतर चूमि ले । खरड़ा दुइ न समाहि, मुहमद एक मियौन महें1 ४७ ॥ पू गुरू बात एक तोहों। हिया सोच एक उपजा मोहीं ॥ तोहि अस कतन मो fह आस कोई । जो कि तू है सड़े टह हरा सोई ॥ तस देखा मैं यह संसारा। जस सब भौंडा गढ़ कोहरा । काह माँ खाँड़ भरि धरई। काह माँभ सो गोवर भरई ॥ वह सब किडु से कहई श्राप चिरि व चुप रहई ॥ मानुष तौ नीके सैंग लासैं। देग्वि विनाइ त टि के भागे सभ चाम सब काह भावा। देखि सरा सो नियर न मावा ॥

टेक = निश्चित बचन । सोई सहस ढूंद = ग्रात्मतत्व या जीव (जिसका अटारह हजार ढूंदों से बरसना पहले कह पाए हैं) । (४७) गाँ दूसर= दूसरे ’’ अध्यात्म पक्ष में । शामिल - अम्ल, खट्रा । सीठा = नीरस । धात करत. संसार के व्यवहार में, कहने सुनने को । खाँडा दू...' = बृतपाद का तस कि अपरिचिटन सत्ता एक ही हो सकती है, एक से अधिक होने से सब परिचित होंगी। (४८) तोहि अस॰ कोई = न भेरा रूप सत्य है, न तेरा । वह सब हई = जब देखते हैं कि कोई अच्छा है, कोई बुरा तब सद कि. कुछ वही है वह कैसे कहा जाय । वयोंकि ऐसा कहने से बुराई भी ” उसमें लग जाती है । सी . = सीझा हुा । सरा = सड़ा हुआ! । = सब सब त्राहि से