पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४८५

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मारीि कलाम ३० परे तरास जो नांघतकोइ रे वार, कोइ पार। कोइ तिर रहा ‘मुहम्मद, कोइ बूड़ा मझधार ॥२८। लोटि हंकारब वह तब भातू । तप कहें होइहि फरमान ॥ पुब कटक जेता है आावा। को सेवक, को बैठे खावा ? ॥ जेहि जस नाउ जियन में दीन्हा । तेहि तस संबर चाहों लीन्हा ॥ अब लगि राज देस कर भूजा। अब दिन आाइ लेखा कर पूजा ॥ छह मास कर दिन करों अंजू । आज क लेगें औ देखों साजू ॥ से चौराहै । बैठे श्रावै । एक एक जन के पूछि पकरावे ॥ नीर खीर हुरंत काबूब छानी। करब निनार दुध औौ पानी ॥ धरम पाप फरियाउब, गन औौगुन सब जोख़ । दुखी न होह ‘मुहम्मद, जोखि लेवें धरि जोख 1२है। । पुनि कस होहि दिसब छ मासू । सूरज आइ तपहि हो पास ॥ कें सउहैं। निरे रथ हाँहै । तेहि मच गू द सिर पार्क ।। बजरागिन अस लागे तैसे। बिलखे लोग पियासन से ॥ उने गिन प्रस व रसे घा। 2ज देह, जरि आवे चामू । जेड़ किट धरम कीन्ह माह तेह सिर पर छाहाँ । जग । किछ प्रावै धरमहि“ यानि पियंउब पानी। पाप बपुरहि छा, न पानी ॥ जो राजता सो काज न आावै। ॥ इहाँ क दीन्ह उहाँ सो पावै । जो लखपती - कहाईलहै न कौड़ी आधि । चौदह धजा ‘मुहम्मदठाढ़ करह सब बाँधि॥ ३ सवा लाख पंवर अपने पाए तेते । जे ते। अपने । एक रसून न छाहाँ। लेहि सिर माहाँ। बैठहि सबही धूप घामें दुखी उमत जेहि के सो का मानै सुख अवसेरी है । दुखी उमत तौ पुनि मैं दुखी । तेहि सुख होइ तौ पुनि में सुखी ॥ कहब रसूल कि आायस पाव। पहिले सेब धरी ले आावों ॥ होझ उतर ‘तिन्ह हीं ना चाहों। पी घाल नरक मढ़ बाह' ॥ (२६) तपे कहै तपग को (अवध)। संवर सामान, कमाई। भूजा भोग किया । से बह; सूर्य । एक एक ‘‘पकराने एक एक प्राणो से सवाल जबाव करके उसे पकड़ाए। मैं कहूँको । जोख तराजू । (३० ) संजतें सामने। गूद सिर पाक खोपडी का गदा पक जाता है । वैसे बैठे िबपुरहि बेचारे क। रजता राजत्व, राजापन । चौदह पाए आासन घजा चौदह ध्वजियों या बंधनों से । (३१) पाए या पर । अवसेरी दु:ख से व्य, चिंताग्रस्त । बाहौं फेक, डालू ।