पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/१२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

। अडुर ज्ञानकोश (अ)११३ अडूसा विलियम चतुर्थकी इच्छाके अनुसार रानी अंडी से मणि (मालाके लिये) तयार करते हैं। लेडके सम्मानार्थ इस नगरका नाम अँडीलेड नागा पहाड़ोंमें इस पेड़से साइत विचारते रक्खा गया। हैं। इसकी कृमि नाशकतामें संदेह किया जा अडुर-यह बम्बई प्रान्तके धारवाड़ जिले रहा है। वैज्ञानिक हूपरने साबित किया है कि में हंगलसे दस मील पूरबमें एक छोटासा ! इस वनस्पतिमै क्षार होता है जिसे वैसिसाइन गाँव है। यहाँकी जनसंख्या लगभग १५०० 1. (Vacisine) नाम दिया गया है। टारट्रेट बाजार १२वीं शताब्दीके एक शिलालेखमें पारडीपुर में मिलता है परन्तु उसीके समान दूसरे कृमि- नामसे इसका उल्लेख किया गया है। १८६२ ई० ! नाशक पदार्थ उपलब्ध होनेके कारण उसका तक यह छोटे विभागका मुख्य स्थान था। इसके उपयोग कम होता है। खाद तयार करने और पूरवमें कालेश्वर महादेवका एक मन्दिर है। वहाँ कृमिनाशनमें इसकी पत्तियाँ उपयोगी हो सकती १०४४ ई० का एक शिलालेख है ( Fleet's Kana- हैं या नहीं इसके लिये अभी और अन्वेषण करने rese Dynasties 36-85-47)। इस गाँवमें दो को श्रावश्यकता है । शिलालेख और भी मिले हैं। एक १०३४ ई. अडूसेको पत्ती अमरूदकी पत्तीकी तरह होती का है और दूसरे पर समय नहीं दिया है। कदा- है। प्रार्यवैद्यकमै कई रोगों पर इसकी जड़का चित् वह भूतपूर्व चालुक्य वंशके छठे राजा वृत्ति- उपयोग भी लिखा है । यह भारतमें सब जगह वर्मा (५६७ ई०) के कालका है ! तेरहवे राष्ट्रकूट- मिलनेवाली, बहुत अच्छी और अति आवश्यक के राजा द्वितीय कृष्णा ( ८७५-६११) के समयके । वनस्पति है। खेद है कि जनताका ध्यान जितना (अर्थात् १०४ ई० का ) और पश्चिमके चालुक्य होना चाहिये उतना इस शोर नहीं है। वंशके राजा सोमेश्वर प्रथम (१०४२-१०६८) के अडूसाकी पत्ती सूखी चाहे हरी दोनोंही उप- कालके (अर्थात् १०४४ ई०) दो शिलालेख हैं। ' योगी होती हैं, पर वह पुरानो होनी चाहिये। उस समयके कुल ४० शिलालेख वहाँ प्राप्त हुए हैं। नयी पत्ती (कोपल ) किसी कामकी नहीं होती, अडूसा-इस वनस्पतिके पेड़ इस देशमै सब पुरानी पत्ती जरा कड़ी होती है। उसकी सुगंध स्थानोंमें पाये जाते हैं। संस्कृतमें वासक, वासा, कुछ उग्र और चायकी पत्तीके समान होती है। अटरुष इत्यादि: मराठीमें अडुलसाः बंगाली में इसकी पत्ती जरा लंबी होती है । यासकः उड़ियामें वासं; कनाड़ीमें अडूसा रासायनिक पृथक्करण-अडूसामें वैसिसीन नाम श्राडशोगे; तेलगूमें अडसर: तामिलमें अधडोडे; का क्षार और अटेटोडिक एसिड' नामका कार्य- गुजरातीमें अडूसो और लैटिनमें Adhatoda; निक अम्ल ( Organic Acid ) रहता है। अंग्रेजीमे Adhatoda Vasaka कहते हैं। गुण-धर्म-कफदोष-नाशक, कफसंस्त्रावी (कफ पैदाइश- भारतवर्षके समस्त ऊरण प्रदेशमें गिराने वाला) और वायुको दबाने वाला है। ४०००फीटकी ऊँचाई तक यह पेड़ पाया जाता है । इसका विशेष गुण रक्तपित्त या ज्ञयक्षतमें गिरने हिमालयकी तराईमें यह बहुत होता है। पूर्वी वाने रक्तको बंद करना है। भागों में साधारण और पश्चिम तथा दक्षिण में बहुत पुरानी खाँसी, साँस कफ अथवा कफक्षयकी कम मिलता है। कहीं कहीं इसके जंगलही जंगल प्रारम्भिक अवस्था ( इसमें बुखार हलका सा नजर आते हैं। रहता है) और अन्य कफजनित दोषोंमें अडूसा उपयोग-औषधि, रंग और खाद इत्यादि में | बहुत लाभदायक है। तीब्र ज्वरमै इससे उतना इसका उपयोग किया जाता है। यह वनस्पति लाभ नहीं होता। पुराने रोगोंमै छोटी पीपर के साथ कृमिनाशक भी है। पुराने कफ-विकार, दमा या अडूसा देनेसे लाभदायक होता है। ( Dr. U.C, क्षय रोगोंमें यह काम देता है। जैकउडके बुरादे | Dutta Hindn Mat. ria Medica) यह कंडुवा के साथ इसकी पत्ती उबालनेसे पीला रंग तयार और ठंढा है। यह कँवल रक्तपित्त, कफज्वर, क्षय, होता है। कृमिनाशक होनेके कारण और पोटाश साँस आदिका नाशक है (राजनिघंटु)। यह की अधिकताके कारण खादके लिये इसकी पत्ती ऊवंग और अधोग रक्तपित्तको नाश करने वाला का इस्तेमाल किया जाता है। रासायनिक भस्म | है (गण)। हृद्रोग, के, कुष्ट, प्यास इत्यादिमें तयार करने में इस पत्तीको काममें लाते हैं। इसी उपयोगी है (धन्वन्तरि )। ज्वर, मेह, अरुचिमें पेड़से बंदूकोंकी कारतूसे तयार करनेके लिये उपयोगी होते हुए बादी और कफको दूर करने कोयला बनाया जाता है । वंगालमें इसकी लकड़ी | वाला है (केयदेव नि०)। इस तरह निघंटुमें