पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/१६०

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अति परमाणु विद्युत्कण, ज्ञानकोश (अ)१४७ अति परमाणु विद्युत्कण रहती है। एक की जगह दूसरा ही पदार्थ बनता सिद्धता पदार्थ-विज्ञान-वेत्ताओं ही द्वारा ही की गई है। अथवा पहिला ही दूसरे रूपमें दिखाई पड़ता है। यह ध्यान रखना आवश्यक है कि बहुत कुछ है। इन सबके होनेके समय किरण-विसर्जन होता साध्य हो चुकने पर भी पूर्ण रूपसे यह सिद्ध नहीं रहता है । सारांश किरणविसर्जनक्रिया से ही यह हुआ है. क्योंकि अब भी मुख्य प्रश्न विद्युत् मूल होता है। विन्दुका ही है। इसके सिद्ध करने के पहले बहुत (२१) परमाणुओंकी अस्थिरताके विक्यमें लॉजकामतः- कुछ और भी सिद्ध करना है। परमाणुको अवकाश परमाणुके आसपाल परमाणु बाह्य नामका जो स्थान विद्युत्कोंको अपेक्षा भी अधिक है। यह विद्युत्कण घूमता है उसकी शक्तिका ह्रास किरण मालूम होनेसे उसकी तुलना जिसके पास पास विसर्जन क्रियाके कारण होता है और धीरे २पर समान श्राकारका जड़त्व (Inertia) हो अथवा माणुकी और वह खिंचता जाता है और उसकी पारस्परिक विद्युद्योगले आकर्षण तथा प्रतिसारण गति बढ़ती जाती है। उसकी गति बढ़ने पर उसका करने वाले गोले हो-ऐसे दो एक तेजोमेघसे कर कार्यक्षम जड़त्व भी बढ़ने लगता है और फिर मध्या. सकते हैं क्योंकि इन तेजोमेघका किरण विसर्जन भिगामी शक्तिके योगसे उसे अपनी कक्षा में रखना | कुछ घरमाणुओके क्ष किरण के समान आघात या कठिन हो जाता है। यह शक्ति विद्युदाकर्षण पर धक्के के अतिरिक्त और कुछ नहीं होता। ही अवलंम्बित है गति पर नही । अतः जैसे जैसे परमाणु तथा अतिपरमाणु विद्युत्कण (Elect-- गति बढ़ेगी वैसेही वह कम होगा। अंत में एक ऐसा rons ) के आकार में बहुत भिन्नता है। यदि समय आवेगा कि विद्युदाकर्षण इस किरणके अति परमाणु विद्युत्कण एक कागके समान माना गोलेको अधिकारमें रखने के लिये पर्याप्त नहीं होता जाय और एक परमाणुमै वे हजार माने जाये तो और फिर वह वर्तमान गतिसे दूर हो जाने का उस परमाणुका आकार खुले अवकाशमें करीव प्रयत्न करता है । इस प्रकार दूर हो जानेसे उसको लगभग ११० घन फीट होगा। ऐसा होने पर भी अधिकारमें रखने वाली विद्युदाकर्षण शक्तिका उसी अति परमाणु विद्युत्कणका भी परमाणु होता वेगकम होने लगता है किन्तु उसका मध्योत्सारी है। वही उसके जड़त्वके कारण हैं । इसीसे उसके वेग कायम ही रहता है। इस प्रकारकी स्पर्धाले : कक्षामै जो परमाणु प्रायेंगे उनसे इसका संयोग समतोलता नष्ट होती है और वह कण स्वतः के होता है। किसी एक संख्यासे कम या अधिक गतिचक्रके स्पर्श रेखाकी ओर परमाणुसे दूर होने के कारण इसीके योगसे परमाणु भिन्न भिन्न निकल जाता है। और इस भाँति एक नयीप्रकारकी गुणधर्म बतलाता है। किरणविसर्जन क्रियाका प्रारंभ होने लगता है। अति-परमाणु-विधुत्कणके गुणधर्म पर यह किरण विसर्जन अति वेगसे दौड़नेवाले विद्युः विचार करके उसके विषय में कुछ निश्चित् मत कर स्कणोंका उत्सर्जन है। इसका बेक्वेरल नामक लेना युक्ति संगत नहीं होगा क्योंकि धन विद्युत् विज्ञावेत्ता ने पता लगाया था। दो एक विद्यु- भागसे इतनी क्यों बंधी हुई होनी चाहिये और स्कणोंका सहसा उत्सर्जन होनेसे या उसकी गतिमें ऋण विद्युत्कण मात्र इतनी स्वतन्त्रतासे क्यों एकाएक रोध होनेसे ईथरमै एक प्रकारकी लहर घूमने चाहिये । इसी भाँति गुरुत्वाकर्षण का भी ( Current ) उत्पन्न होती हैं उसीको राँटजेन पूरा पूरा ज्ञान नहीं हो सका है। जब विद्युत्कण किरण कहते हैं। क्योंकि इसका श्राविष्कर्ता का सद्धान्त पूर्णरूपसे स्प होगा तभी गुरुत्वा- रॉटजेन नामक विज्ञानवेत्ता था। कर्षणका प्रश्न भी सुलझ सकेगा। ऋण विद्युत्कण (२२) उपसंहारः--इस विषय पर बहुत कुछ का ही विचार अब तक भलीभाँति होता रहा है लिखने पर भी यह विषय पूर्ण नहीं होता तो भी क्योंकि वे स्वतन्त्ररूपसे भ्रमण करते रहते हैं। स्थलसंकोचके कारण अधिक नहीं बढ़ा सकते। किन्तु धन विद्युत्कणका बिना भलीभाँति ज्ञान हुए इसमें मुख्य महत्वका विषय विद्युत् मूल तत्व ही विद्युत्कणकी चाल इत्यादिका पूर्ण ज्ञान होना है। हमलोग जिसे परमाणु कहते हैं और जिसका कठिन है। लॉरमूर नामक विज्ञानवेत्ता कहता है इससे सूक्ष्म विभाग करना शक्य नहीं है वे इन कि धन-विद्युत्कण ऋणविद्युत्करणका शीशेमें पड़ा विद्युत्कोसे ही बना है। और सब पदार्थोंके हुश्रा प्रतिबिम्ब है। परमाणु भी इसी प्रकारसे बने हैं। सब पदार्थों के अब तक धन-विद्युत्करण के विषय में जो कुछ मालूम एक मूलत्वका या अद्वैत ( Unification of ! है, उस पर विचार करनेसे विद्युत्कणके समान matter ) का जो तत्वज्ञोंका सिद्धान्त है उसकी इनके स्वतंत्र अस्तित्वका नहीं पता लगता किन्तु