पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/१६४

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-- .... अतीश ज्ञानकोष (अ)१५१ शुहार फर दुद्दीन (१०) आश्रम । इन लोगों में अपने नामके आगे ' ताल्लुकेका यह मुख्य स्थान है । यहाँको जन- अपनी उपजाति लगानेकी प्रथा है। जैसे चंचल संख्या लगभग १०००० है। गाँवके उत्तरमै एक भारती इत्यादि । इनमें जरे आजीवन ब्रह्मचर्या- किला है। १८वीं शताब्दीमें यहाँ बेटीमुदलीयार श्रम में रहते हैं वे 'मठधारी' कहलाते हैं और जो नामक एक प्रसिद्ध सरदार रहता था। यह गृहस्थाश्रममें प्रवेश करते हैं वे 'घरबारी' कहलाते सालेमले त्याग द्रुग जाने वाले पहाड़ी मार्ग में हैं। मद्यमांस इनमें वर्जित नहीं है। बहुतेरे इनमें स्थित है। अतः हैदरअलीके युद्ध में इस स्थान भीख मांगकर जीवन निर्वाह करते हैं। इनको का बड़ा महत्व था। यहाँका किला अंग्रेजोंने गुसाई भी कहते हैं। ये जनेऊधारी नहीं होते। टीपूके दूसरे युद्धमै ( १७६८ ई०) विजय किया स्त्रियोंके पुनर्विवाहकी प्रथा है । भुजमें कल्याणेश्वर था। नीलकी खेतीके लिये यह स्थान प्रसिद्ध है। अंजारके अजयपाल, तथा पश्चिममें कोटेश्वर, इन : यहाँ बैलगाड़ी अच्छी बनती है। लोगोंके मुख्य निवास स्थान हैं। प्रायः ये शैव होते; अत्तार फरीदुद्दीन {--यह ईरोन देशके एक हैं। इनके मरनेके बाद इनकी समाधि बनायी प्रसिद्ध कवि और गूढ़ तत्ववादी हो गये हैं। यह जाती है और उस पर शिवलिङ्ग स्थापन करते हैं। निशापुरमै १११६ ई० में पैदा हुए थे और १२२६ इनकी कुछ बस्ती आसाममें भी है (Indian Ant- | ई० में इनका देहान्त हो गया था। इनके जन्म v 188 बग०, सेन्ससरिपोर्ट) तथा मृत्यु-कालमें मतभेद है। इनका पूरा नाम अतीतानन्दः-इनके ग्रंथोंसे ठीक पता नहीं अबूतालिब (अबृहामिद ) मुहम्मदचिन इब्राहीम चलता कि इनके गुरू ब्रह्मानन्दके शिष्य स्वानन्दा था। फरीदुद्दीन (धर्मके मोती) इनकी उपाधि नन्द थे अथवा शिवानन्द थे। परन्तु रा० चान्दोर थी। पहले अपने पिताके व्यापारको ये भी करते करका यह मत है कि इनके गुरु शिवानन्द ही रहे थे। इनके पिता गन्धी ( अत्तार) थे। इनकी होगे। ग्रंथः-योग वासिष्ट (सं० क का सू०) धार्मिक जागृति तथा आत्माके अस्तित्वके गूढ़ अतीश-यद्यपि बौद्ध साधु अतीश अथवा ज्ञानके विषयमें एक विशेष किंवदन्ती है। उसका दीपंकर भारतवर्षका ही रहने वाला था, तथापि । उल्लेख नीचे दिया जाता है। तिब्बतमें जाकर उसने वहाँके लामा धर्ममें बहुतसे एक दिन एक फकीर उनके दूकानके सामने सुधार किये। १०३८ ई० में जब वह तिब्बत श्राकर कहने लगा. 'तुम लोगोंका अज्ञान देख कर पहुँचा तो उसने देखा कि वहाँके तत्कालीन बौद्ध मुझे दुःख होता हैं। जिस धन दौलतके लिये धर्म की बागडोर वहां अन्यायी भिक्षुकोके हाथमें इतनी हाय हाय कर रहे हो उन सबको यहीं छोड़ है। चारों ओर प्रेत पूजा फैली हुई थी जिससे ! कर खाली हाथ ही मृत्युका आलिङ्गन करना वे धोर अवनतिके गढ़ेमें गिरते जा रहे थे। शुद्ध-, पड़ेगा। इसका इन पर बड़ा प्रभाव पड़ो। तम बौद्धधर्मका उदाहरण सन्मुख रख कर उसने उन्होंने अपनी दुकान इत्यादि छोड़कर अपना 'कादम' नामक नया पंथ चलाया। इसी धर्मके चित्त परमार्थिक विषयों की ओर लगाया। इन्होंने आधार पर वहाँका आधुनिक राष्ट्रधर्म ‘गेलुग' मक्का, मिश्र, दमास्कस तथा भारत आदि स्थानों (पीत शिरस्त्राण) का चार हुआ। प्रेत पूजा की यात्रा की। अन्तिमकाल उन्होंने शाद्याखमें का नाश तथा ब्रह्मचर्य पालन आदि अनेक सुधार व्यतीत किया था। इसने किये। उसके लिखे हुए अनेक तात्विक इनके मृत्युके विषय में भी बड़ी आश्चर्यजनक ग्रंथों में से 'बोधि पंथ प्रदीप' विशेष प्रख्यात है। | कथा है। चंगेज़खाँ के एक सैनिक इमको पकड़ उसने भारतके अनेक बौद्ध-धर्मीय ग्रंथोंके अनुवाद । ले गया और गुलाम बना कर बेचना चाहा। तिब्बतकी भाषामें किये हैं । इसके उपदेश अत्यन्त इनकी कीमत पहले अच्छी लग रही थी, किन्तु लोकप्रिय तथा हितकारी थे। इसको लोक इन्होंने मालिकसे उस समय तक रुक जानेको प्रियताके कारण ही 'सस्क्य' तथा 'कम्यु' नामक कहा जब तक कि और अधिक मूल्य न लग जावे दो अधूरे पंथोंका निर्माण हुआ था। सस्क्य पंथ किन्तु बादमें उसको उतना मूल्य भी न मिला। तो बहुत दिनों तक जारी रहा । १०५२ ई०में लासा इससे क्रोधित होकर उसने फरीदुद्दीनको मरवा के पास ( Nortang ) नेटांगमें इसका देहान्त डाला । तत्पश्चात् इनकी एक कब्र बड़े समारोहसे हो गया इसकी समाधी पर बना हुआ स्तूप आज बनवाई गई और उसको धार्मिक रूप दे दिया तक मौजूद हैं। गया। उसने १२०८ दोहे (शेर ) लिखे हैं । अन्तमें अतूर-मद्रास प्रान्तके सालेम जिलेमें अतूर भगवत-भजनमें वह ऐसे लीन हो गये कि कविता