पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२१५

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अदिति ज्ञानकोश (अ)१६२ अदिति लिये नियत करदी है। यह बर्तन तीनसे दसफीट जन्म-जन्मान्तर उसकी कोखसे जन्म लेना पड़ा। तक गहरे हैं और एक दूसरेसे ६फीटके अन्तर पर वैदिक स्वरूपः-अदिति पर बेदमें स्वतन्त्र गड़े हुए । इन बर्तनोंके अवशेष तथा उसमें सूक्त नहीं मिलते किन्तु इसका उल्लेख अनेक रक्खी हुई वस्तु अब भी अच्छी स्थिति में मिलती ! स्थानों में आया है इसका कोई विशेष रूप भी है। असली सोनेके आभूषण उत्तम नकाशीदार निश्चित नहीं देख पड़ता। कहीं कहीं पर 'अना लोहे तथा कांसे के बरतन इत्यादि कुल मिला कर विशेषण प्रयुक्त किया है । मित्रा वरुण की (ऋ० अब तक १२०० वस्तुएँ मिल चुकी हैं । ८.२५.३, १०.३८३) तथा अर्यमा की (ऋ०६. लोहे की चीजोंमें टाँगने की लानटेन, तलवार, ४७६) इसको माता लिखा है। अतः यह राजमाता भाले, चाकू, हथौड़े, कैंची, चूड़ियाँ, त्रिशूल, ( ऋ० २०, २७. ७) कह कर सम्बोधित की गई पुत्रों को काँसेके कटोरे, सुन्दर दीपक इत्यादि भी मिले हैं।गयी हैं । (ऋ०३,४.११ ८.५६,११)। ऐसे आठ यह सब यत्नपूर्वक मद्रासके अजायब धरमै रक्खी पुत्र कह गये हैं (ऋ० २०. ७२. ८)। उसको हुई हैं। कुछका कथन है कि प्राचीन कालमें यहाँ 'पस्त्या' भी कहा है। एक वड़ा विशाल नगर वसाहुआथा। रीयसाहब पौराणिक कथाओं में इसको दक्षकन्या तथा का मत है कि यह नगर तथा उसके अवशेष कश्यप-पत्नि कह कर उल्लेख किया है। किन्तु पाण्ड्य राजाओंके काल का होगा। मृतकों को वेदोंमें इसे विष्णुपनि लिखा है। 'दिति' का अर्थ गाड़ने की प्रथासे इस मत की पुष्टि भी होती है। बन्धन किया है और 'अदिति' का अर्थ मुक्त है। संशोधन का काम अबभी जारी है। इससे प्राचीन ! जल पृथ्वी आदि की उत्पन्न करने वाली इसको इतिहास का धीरे धीरे पता लगता जावेगा। माना गया है ( १०, ६२, २)। आगेके सूक्तोंमें इसे ( ई० गॅ० ५) इनकी माताभाव कर दूध पिलाने का वर्णन किया अदिति-वेद तथा पुराण दोनो हीमें इसका है। अन्य स्थानों पर ( ऋ०१, ७२, ९, अ० १३,१, उल्लेख मिलता है। ३८) इसे पृथ्वी का ही रूप मानकर वर्णन किया पौराणिक स्वरूप:-यह कश्यप ऋषि की तेरह है। ऐसा भास होता है कि इसे विश्वसृष्टि की पत्नियों में से सबसे बड़ी स्त्री थी। यह प्रचेतस मूर्ती का रूप दिया गया है। सूर्य की माता होनेसे दक्षकी कन्या थी। आदित्य नामक बारा देवता कभी कभी इसे तेजोमयी माना गया है। तेज इसीके पुत्र थे। ( महाभारत पा० ६५०) । एक प्राप्तिके लिये उसकी प्रार्थनाएँ की गई है ( ऋ० बार मैनाकपर्वत पर स्थित विनशन नामक तीर्थ में ४, २५, ३, १०, ३६, ३ )। इसके अक्षय तेज का अदितिने चरू (खीर समान पदार्थ) पकाया वर्णन करते हुए इसके मुख की तुलना 'उषा' से था। (महाभारत बन० १३५) । प्राज्योतिष नामक , की है (७, ८२, १०)। कहीं कहीं पर ऋगवेदमें एक असुरों का नगर था। वह मनुष्यो द्वारा । (१, १५३, ३, ८, ९०, १५, १०- ११. १) तथा अन्य छागम्य तथा अभेद्य समझा जाता था। उस नगर वैदिक ग्रंथोंमै ( वा, सं० १३ ४३, ४६) इसको का भूमिपुत्र नरकासुर नामक महाबलवान् दैत्य गो रूप' माना गया है। भूलोकके सोमरस की अदिति का रत्नखचित कुण्डल चुराकर भागा तुलना अदितिके दूधसे की है। जारहा था। श्रीकृष्णने वह कुण्डल उससे छीन उपरोक्त कल्पनाओं से अदितिके दो मुख्य लिया और वापस लेआये (महाभारत-उ०प०४०)। स्वरूप मालूम पड़ते हैं। एकतो देवमाता, दूसरे कदम्ब कविद्वारा रचित 'अदिति कुण्डलापहरण शारीरिक तथा नैतिक दोष बन्धनोंसे मुक्त करने नामक नाटकमें यही कथा विस्तार-पूर्वक दी हुई है। वाली अनन्य शक्ति । इसके नाम सम्बन्धी कल्पना- एक कथा दी हुई है कि अदितिके पेट में आँसे इसे गौ' पृथ्वी, अन्तरिक्ष, विश्व, आदि श्रीकृष्णने सात बार गर्भरूपमै वास किया था। संज्ञा प्राप्त होती है । किन्तु इन निराकार वस्तुओं अदितिक पृश्नि आदि जो भिन्न भिन्न अवतार है को आकार कैसे प्राप्त हुआ तथा सूर्यक्री माता उनमें से एकमे उसके गर्भसे श्रीकृष्ण भी उत्पन्न कैसे हुई, इसका कारण पता नहीं। वईइनके हुए थे। एक समय देवयुगमे जब सब बड़े बड़े मतसे देवता को दूध देनेवाली माता अदिति 'द्यो' महात्मा ही तीली लोकपर अनुशासन करते थे,उस (आकाश) रूप मेंही होगी (ऋ० १०, ६३, ३)। समय पुत्रप्राप्तिके लिये एक पैर पर खड़े होकर ऐसी कल्पनामें ही अदितिके मातृत्व भावको खोज अदितिने घोर तप किया था। इसी कारण विष्णुको निकालना होगा। दूसरे मतके अनुसार (ऋग-