पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२३७

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अनन्त ज्ञानकोष अ)२१४ अनन्त किया जाता है। अनन्त शेषशायी नारायणका कर प्रस्थान किया। अन्तमें अमरावती नगरी में अगम्यरूप हैं और इसको कल्पना भी सर्परूपमै | पहुँचते ही सुशीलाके भक्तिपूर्वक अनन्त पूजा दर्शाई जाती है । अनन्त पुजनके लिये भगवानकी | सम्मिलित होनेसे वहाँ के नागरिकों द्वारा इनका प्रतिमा दर्भकी बनाई जाती है। नैवेद्यके लिये भी अच्छा श्रादर सत्कार हुओ और अन्त में इन्हें १४ प्रकारके पक्वान्न होने चाहिये। भाद्र सुदी चतु- अपना राजा बनाया। इस भाँति अनन्तव्रत और दशीको कुलके बड़ेको पवित्र होकर उपवास करना पूजाका प्रभाव देख पड़ा। चाहिये और सायंकालको सपत्नीक अनन्तपूजा एक दिन संयोगसे सुशीलाके हाथमै बंधे हुए करके भोजन करना चाहिये । कहीं कहीं इष्ट मित्रों अनन्तपर कौण्डिण्यकी दृष्टि पड़ी। अतः उन्होंने को भी निमन्त्रित करनेकी प्रथा है। उपरोक्त दर्भ | सुशीलासे उसके विषयमें पूछा । सुशीलाके कथन की प्रतिमाके साथ एक उत्तम रेशमी डोरा भी पर सहसा उनको विश्वास न हुआ और उसको रखकर पूजाकी जाती है। पूजाके पश्चात् यह डोय नीच श्रेणीका तन्त्र मन्त्र समझकर विध्वंसकर हाथमें बाँध लिया जाता है। कुछ लोग तो साल डाला और उस डोरेको अग्निमें जला दिया। भर तक इसे बाँधे रहते हैं। लोगोंका विचार है | सुशीलाको इससे असीम कष्ट तथा दुःख हुआ कि अनन्त पूजा तथा व्रत अत्यन्त कल्याणकारी है | और उस जले हुए डोरेको अग्निसे निकालकर और नष्ट ऐश्वर्य तथा गौरवको पुनः प्राप्त करनेका । शीघ्र ही फिरसे पूजन किया। अच्छा साधन है। जिस समय बारह वर्ष के बन किन्तु कौण्डिण्यके इस निरादरसे उनको शीघ्र वासका असीम कष्ट पाण्डव लोग उठा रहे थे, हो घोर दरिद्रता भोगनी पड़ी। सम्पूर्ण राजपाट उस समय उन्होंने श्रीकृष्णसे इससे मुक्तिका हाथसे निकल गया । अब उन्हें अपने कृत्यपर घोर उपाय पूछा। श्रीकृष्णने पाण्डवोसे अनन्तत पश्चात्ताप होने लगा। अन्तमें ऋषिने लक्ष्मी करनेको कहा, और अनेक प्राचीन कथाओं द्वारा नारायणके दर्शन होनेतक व्रत करनेका दृढ़ निश्चय इस व्रतकी महिमा तथा प्रभावका वर्णन किया। कर लिया। इस प्रकार पतिपनिने अनन्तत फिर एक कथा इस प्रकार है कि सतयुगमें सुमन्तु से करनेका संकल्प किया। उस व्रतको करनेपर नामक एक वसिष्ठगोत्रोत्पन्न ब्राह्मणने दीक्षा उन्हें अपना पूर्व वैभव फिरसे प्राप्त हुआ। नामकं भृगुऋषिकी कन्यासे विवाह किया था। अनन्त—इस नामके अनेक प्राचीन लेखक उसको सुशीला नामक एक उदार प्रकृतिवाली | हो गये हैं। कुछ के ग्रन्थ तो बड़े उत्तम है । सर्वगुण सम्पमा कन्या उत्पन्न हुई। कुछ कालके (१) कात्यायनश्रौत सूत्रके टीकाकार तथा पश्चात् दीक्षाका देहान्त हो गया और सुमन्तुने । प्रतिज्ञो परिशिष्ट भाष्य के लेखक । इनके ग्रन्थसे एक कर्कशा स्त्रीसे विवाह कर लिया। एक समय | देवभद्र तथा याज्ञिक देवने अनेक उदाहरण लिये कौण्डिण्य नामक एक ऋषि सुमन्तुके घर आये हैं। अनन्तने भी अपने पूर्व लेखक वसुदेव, कर्क, । उनको हर प्रकारसे अपनी कन्याके पितृभूति यशोगोभिन तथा भर्तृ यज्ञकी पुस्तकोंसे उपयुक्त देखकर तथा अपनी कन्यासे सम्मति उद्धरण लिये हैं। (ऑक्ट-कॅट-कॅट पीटरसन- लेकर उसका पाणिग्रहण ऋषिके साथ करा दिया। | रिपोर्ट ४) कुछ समय तक ये दोनों वर-बधु सुमन्तुके घर पर (२) हरीके पुत्र! इनका अनन्त सुधारस नामक ही रहे । सुमन्तु एक ओर तो अपनी कर्वशा स्त्री पञ्चाङ्गगणित ग्रन्थ विख्यात है। यह लगभग शक के व्यवहार से दुःखी रहते थे दूसरी ओर अपनी सं० १४४७ में हुए होगें। इनका ग्रन्थ सूर्यसिद्धान्त कन्या और जामाताके वियोगके विचारसे अधीर पर निर्भर है। यद्यपि यह सन्देहका विषय है हो उठते थे। अन्तमे वरबधूकी यात्राको १३, १४ किन्तु कुछका मत है कि मुहुर्त मार्तण्डके रचयिता दिन रह गये। जब यात्राका दिन आया तो सुमन्तु नारायण इन्हींके पुत्र थे। (शं. वा. दीक्षित- की. स्त्रीने भोजन तक न बनाया और ये दोनों भारतीय ज्योतिष शास्त्र) सुमन्तुसे श्राज्ञा लेकर रथपर रवाना हो गये। (३) शक सम्वत् १२७६ में महादेव द्वारा मार्गमे कुछ सौभाग्यवती स्त्रियाँ स्वच्छ वस्त्रालङ्कार | लिखित 'कामधेनु' नामक ग्रन्थके टीकाकार। से सुशोभित होकर एक नदीके तीरपर अनन्त | इन्हीं अनन्तका लिखा हुआ जातकपद्धति' नामक पूजाकर रही थीं । उनको देखकर सुशीला भी उन ग्रन्थ है। इनका गार्य गोत्र था, और निवास स्थान में सम्मिलित हो गई । इधर कौण्डिण्य ऋषि भी था विदर्भ-देशका धर्मपुरी नगर । कुछ दिया। नित्य क्रिया समाप्तकर चुके थे। अतः रथपर बैठ काशीमें भी रहे थे । इनके पिता चिन्तामणनहब