पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२५७

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मीत लम्बा अनुराधपुर ज्ञानकोश (श्र २३४ अनूप शहर तहसील इस नगरका उल्लेख ४११-१२ ई० में चीनी कनिष्ठ पुत्र । ज्येष्ठ पुत्रका नाम विन्द था। (महा० बौद्ध यात्री फाह्यातने अपने ग्रन्थमें किया है जिसमें दो० ५० १९) उसने इसकी भड़कीली इमारतो. भिजुओंकी (२) विन्द और अनुविन्द नामके कैकयराजा विद्वत्ता और राजा तथा प्रजाके पवित्र आचरण के दो पुत्र थे। अनुविन्द महाभारतमें पाण्डवों का सुन्दर वर्णन किया है। उस समय अनुराध | की ओर था। उसे सात्यकीने मारा था। (महा. पुरमें मगधके नालन्द विद्यापीठकी तरह ही प्रसिद्ध कर्ण पर्व० ३३) एक विद्यापीठ था जिसमें वैद्यक, ज्योतिष, काव्य, (३) धृतराष्ट्रके सौ पुत्रोमें से एक । ( महा० व्याकरण और साहित्यको उच्च शिक्षा दी जाती आदि प०५६) थी। यहाँ प्रायः पाली भाषाके ही ग्रन्थ पढ़ाये अनशाल्व-यह सौभपति शाल्व राजाका भाई जाते थे। इसमें नीतिशास्त्र, धर्मशास्त्र तथा था। शाल्वको श्रीकृष्णने मारा था। इसीका धार्मिक तत्वज्ञानकी भी शिक्षा दी जाती थी। बदला चुकानेके लिये पाण्डवोंके अश्वमेध यज्ञके इस विद्यापीठमें सिलोनके ही नहीं प्रत्युत उत्तर समय यह सेनाके साथ गुप्त रूपसे हस्तिनापुर भारत एवं दूर दूर स्थानोंके विद्यार्थी अध्ययनके | आया और अवसर पाकर यशका धोड़ा चुरा ले लिये पाते थे। इन्हीं विद्यार्थियों में गया (विहार) गया। भीमसेनने सेना सहित इसका पीछा का सुप्रसिद्ध भाष्यकार बुद्धघोष भी था। जिस | किया। प्रद्युम्न और वृषकेतुने इसे पकड़नेकी समय बुद्धघोष सीलोनमें था उस समय जलके प्रतिज्ञा की पर प्रद्युम्न हार गया किन्तु वृषकेतु अभावको दूर करनेकेलिये धातुसेन नामक राजाने | उसे पकड़ लाया। मृत्यु के भयसे इसने अश्वको ४५०ई० में एक झील बनवायी जिसका घेरा लौटा दिया और मित्रता कर अश्वमेध यज्ञमेस हा. पचास मील है। इसके एक ओर का वाँध चौदह | यता करनेका भी वचन दिया ( जै० अश्वमेध अ० । उसी झीलसे नहरोंके द्वारा १२-१४) इसका महाभारतमें कहीं उल्लेख नहीं है। शहर में पानी खाया गया है। इन नहरोमें से अनूपगढ़-बीकानेर राज्य (राजपूताना ) कई अभी तक वर्तमान हैं और खेतीके काम में | के सरतगढ़ नजामतका एक मुख्य ठिकाना है। उनका उपयोग होता है । अनुराधपुरका अंतिम | यह बीकानेरसे ८२ मील उत्तरकी और है। जन मुख्य काम यही बाँध था। संख्या लगभग एक हजार है। यह उच्अ० २६ इसके अनन्तर यहाँके राजपुरुषोमें परस्पर २२ और पू० रे० ७३१२ में स्थित है । सन् युद्ध हुये जिनमें वे तामिल लोगोंकी भी सहायता | १७६८ ई०में यहां एक किला बना था जिसका नाम लिया करते थे। इन तामिल लुटेरोकी सेनाओं बीकानेर के राजा अनूपसिंहके नाम पर रखा गया ने अनुराधपुरको कई बार लूटा। ७५० ई० में अनूपगढ़ विभागमें कुल ७५ गांव हैं जिनकी जन यहाँ से राजधानी हटाकर पुलस्त्यपुर में ले जानी | संख्या ८००० है। इनमें प्रति सैकड़े ५१ राठौर हैं पड़ी। तब से ग्यारहवीं शताब्दीके मध्य इस विभागमें जलका अभाव है। खेती भी तक इसका शासन-सूत्र कई बार कई पक्षीमें बद्- | मामूली है किंतु चरागाह अच्छे अच्छे हैं। सज्जी लता रहा। ग्यारहवीं शताब्दीमें एक बार और लाना (एक प्रकारका वृक्ष ) इस भागमें सिंहली पाखण्डीने इसे अपने अधिकारमें किया बहुत पैदा होते हैं। इससे सोडा बनाया था पर वह भी राजच्युतकर दिया गया, यहाँ तक जाता है। कि १३०० ई० में अनुराधपुरकी बस्ती प्रायः अनूप देश इस प्रान्तकी राजधानी माहिष्मती उजाड़ हो गयी और वोधि वृक्ष के निकट यत्रतत्र | थी जहाँ सहस्रार्जुन राज्य करता था। महाभारत कतिपय भिक्षुकोंके अतिरिक्त और कोई न दिखायी | के समय यहाँ नील नामक राजा राज्य करता था पड़ता था। उसके आसपास जंगल भी हो गया जो पाण्डवोके पक्षमें था। ( महा० भी० पर्व ९) था। किन्तु आजकल पुनः वहाँ पर व्यवस्थित रूपसे नगर बसानेका अंग्रेजोंका विचार हो रहा शहर जिलेके पूर्व दिशामें स्थित एकतहसील । इसमें अनूप शहर तहसील-संयुक्तप्रांत के बुलन्द । १६०५ ई० में मटलेसे लेकर अनुराधपुर तक अनूपशहर, श्रहार और डिवाई तीन परगने हैं । रेलवे लाइन भी बढ़ा दी गयी है। यह उ०१० २८°५ से २८°३७. और पू. रे० अनुविन्द-(१) दुर्योधनके पक्षका एक वीर | ७७२ से ७८",२८' में स्थित है। इसका क्षेत्रफल जिसे अजुनने मारा था। बसुदेवभगिनी राजाधि ४४४ वर्गमील है। जनसंख्या लगभग दो लाख देवी और उसके पति अवन्तीके राजा जयसेनका अस्सी हजार है।