पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२९८

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अपुष्प वनस्पति अपुष्प वनस्पति ज्ञानकोश (अ) २७५ गलाकार पेशी होती है और उसमें जननपेशीकी वहाँ का पोषक द्रव्य जब खतम होने लगता है निश्चित संख्या बहुधा आठ होती है। दूसरी तब उनसे जननपेशियाँ उत्पन्न होती हैं। ये भिन्न भिन्न आकारकी चार पेशियोंके एक ही भाग | बनस्पतियाँ चोनी पर रहती हैं और उनसे मद्य व पर अथवा एक पेशीमय भागपर जनन पेशियोंकी कवंद्विवारिणद नामका वायु तैय्यार किया जाता है एक निश्चित संख्या बहुधा चार होती है। अन्य द्राक्ष पर इनकी जननपेशियाँ रहती है इस लिये जनन पेशियाँ उस भागपर कलिकाके समान द्राक्षका रस निकाल कर रखनेसे वह खट्टा हो निकलती हैं। जाता है और उससे मद्य तय्यार हो जाता है। इसका प्रथम आन्तरिक भेद-इसमें संयोगिक ताड़का रस प्रथम बिल्कुल मीठा रहता है और इन्द्रियां रहती हैं। रजका रेतसे संयोग होने पर उससे गुड़ तथा शीरा तैयार करते हैं। किन्तु उससे उत्पन्न होनेवाली जननपेशी मूल वनस्पति वही रस कुछ देर रह जानेसे खट्टा हो जाता है से अलग न होकर वहीं रहती हैं और उससे वहीं और उसको ताड़ी नामको शराब वनती है । ऐसो पर तन्तु उत्पन्न होते हैं और उनमें प्रयोग सम्भव दारु तय्यार करने में किण्व ही सहायक होता है । जननपेशी निकलती है। ये तन्तु ओर पहलेके | स्व प्रकारको पीनेको शराब किण्वले ही तैय्यार तन्तु मिलकर कभी २ एक फलके समान पदार्थ होती है, इस लिये उसका अाजकल बहुत तैयार होता है। इसके दो बिभाग किये जा प्रमाणमें व्यापार सम्बन्धी उपयोग होता हैं। सकते हैं---पहिला तो तन्तुसे संयोगिक इंद्रियां द्वितीय प्रांतरिक भेद-इसमें योगसम्भव उत्पा- उत्पन्न होना जिसे लिंग पीढ़ी ( Garmatophyte) दन बिल्कुल नहीं होता। केवल एक ही बनस्पति कहते हैं, तथा दूसरा इसके संयोगसे होनेवाली में ये इंद्रियां अथवा इन्द्रियों को श्रावशेष पाया अननपेशीसे तन्तु उत्पन्न होकर उनमें अयोगसंभव जाता है। किन्तु इस वनस्पलिमें भी इन इन्द्रियों रीतिसे जननपेशीका निकलना; जिले अलिंग पीढ़ी की संयोग-शक्ति नष्ट हुई रहती है। इनमें भी ( Sporophyte) कहते हैं। इस बारेमें तथा तन्तु होते हैं और इनसे प्रायः चार २ जननपेशियाँ इनके संयोगके बारे में यह जाति लाल वनस्पतिके | निकलती हैं। इस जननपेशीसे फिर तन्तु उत्पन्न होते हैं। गेहूँ मका इत्यादि धान्य पर जो लाल अयोगसंभव उत्पादनमें एक पेशीके केन्द्र के | रोग रहता है वह इसीसे होता है। इनके कारण पाठ भिन्न २ भाग होते हैं और इनकी जनन फसलका बहुत नुकसान होता है। छत्री अथवा पेशियां होती है। ये बहुधा एकके आगे एक | भूछत्र नामकी बनस्पति इसी जातिकी होती है। नथे हुए पेशीमें रहते हैं। इस पेशीके टोक फटने इनके अनेक भेद होते हैं और वे सब सड़ने वाले बाहर निकलती हैं और वायु के साथ उड़ | काष्ट इत्यादि पदार्थों पर उगते हैं। उसमें एक जाती हैं। बरसातमें बूटपर, जूतेपर अथवा डंठल रहता है। उसपर छातेकी तरह फैलने लकड़ीपर हरे अथवा पीले रंगका भूरा सा जो वाला अथवा ऊपर गोलेके सदृश एक भाग रहता देख पड़ता है वह इसी जातिकी एक बनस्पति | है। यह डंठल लम्बे २ सूतके सदृश पेशियोसे है । ये बहुत छोटी होती । एक प्रकारका ऐसा बना हुआ रहता है। ऊपरके बड़े हिस्से में जनन- ही भूरा सा धान्य पर आता है। यह अत्यन्त पेशी निकलती हैं। उस भागके अधोभाग में औषधोपयोगी है। इसले अरगाट (Ergot) झालरके समान बहुतसे फुदने होते हैं. इन फुदनों नामको औषधि निकलती हैं। से बहुतसे अति सूक्ष्म तन्तु निकलते हैं और कई इसी जातिमें किएव ( Yeast) नामक बन एक पर जननपेशी निकलती हैं। कुछ जातियाँ स्पतिका समावेश होता है। यह बनस्पति पेशि- बहुत विषारी होती हैं तो कई एककी गणना मय है। इसका श्राकार गोल अथवा लम्बाई उत्तम स्वादिष्ट सागों में होती है। बहुतसे लोग लिये गोल होता है। प्रत्येक पेशीमें एक केन्द्र इसका साग बनाकर खाते हैं। रहता है। इसका उत्पादन प्रायः वानस्पतिक [विशेष व्यौरेके लिये 'पिकोके रोग' नासक लेखको रीतिसे होता है। पेशोमें कलीके सदृश प्रथम देखिये ।। एक फुदनी निकलती है और बढ़ते २ उसोकी (१४) शिला बल्क (Lichens) यह बन- एक स्वतंत्र पेशी हो जाती है। ऐसी अनेक पेशियां स्पति दो बनस्पतियोंके पास २ होनेसे एक दूसरे एक दूसरेसे चिपकी रहती है और उनसे एक की सहायतासे उत्पन्न हुई संयुक्त बनस्पत्ति है। जंजीर तैय्यार होती है। जिस जगह ये रहती हैं | उच्च कोटि के अलिंबके (मुख्यतः विभाजितालिम्ब सदृश है। पर