पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२९९

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अपुष्प वनस्पति ज्ञानकोश अ) २७६ अपुष्प वनस्पति के पहिले आन्तरिक भेद बालोंके ) अथवा नील- | के सदृश होता है। इनके स्थाणुओका एक छोटा पाणकेश (Cyanoppyceae) और हरित पाण सा गुच्छा होता है और वह नीचे केवल पत्थर पर केश ( Chlorophyceae) के विल्कुल निकट सह अथवा पेड़में चिपका रहता है। कुछ अंश हवा वासके कारण दोनोंके संमिश्रण से एक स्थाणु में स्वतंत्र रहता है अथवा जमीन पर फैलता है। होता है और इसीको शिलावल्क कहते हैं। यदि इनमें की भुकड़ीमैसे जनन पेशियां निकल ती ठोक २ भेद किया जाय तो अलिब और हरित् या | हैं किंतु वे अकेली प्रायः नहीं उगती। इनके जोड़ी नील पाणकेश (Algae ) दोनोंका उन २ भागोमे में अगर पाणकेशी पेशियां न रहे तो ये नहीं उग- विचार करना चाहिये। किन्तु भिन्न २ शिला- ती। कुछ केले उग सकती हैं। शिला बल्को वल्कों में ही इतना सादृश्य है कि उनकी एक का वानस्पतिक उत्पादन होता है। स्थाणुके टुकड़े अलग जातिका बनाना ही अच्छा होगा। हो कर वे अलग होते हैं और प्रत्येक टुकड़ा बढ़ प्रथम तो कुछ पाण केशों की ( Algae )पेशियो कर अपने लिये तंतु उत्पन्न कर पत्थर पर चिपकता के चारों तरफ बहुतसे अलिवके तन्तु जमते हैं | है। मिश्रस्थाणुमे प्रायः पाणकेशियोंके चारो और उनको पूर्ण रूपसे बझा देते हैं। बुरशीको तरफ तंतुओंका एक मजबूत वेष्टन हो कर एक इस पारण केशौकी पेशियोसे इन्द्रिय द्रव्य मिलता गोला तैय्यार होता है। तब स्थाणु फूटता है है, और उस पर उनकी उपजीविका अवलंबित और यह गोला बाहर निकल कर हवाके साथ रहती है। कई दफे तो ये तन्तु पाणकेशकी | उड़ जाता है और नवीन शिलावल्क उत्पन्न होते पेशियों में भी प्रवेश करते हैं और उनमें का द्रव्य हैं। फलके सदृश भाग केबल भुकडीका रहता खा जाते हैं। इसके अतिरिक्त पाणकेशकी है। पाणकेश केबल वानस्पतिक रीतिसे उगते पेशियोको अलिंबसे भी अनेक पदार्थ मिलते हैं, पर लिंबकी तरह तंतु जरूर आते हैं। हैं। इस रीति से यह जोड़ी एक दूसरे की सहाय विभाजित ( Eumycetes ) के पहिलेके अंतरिक तासे अपना २ आयुष्य क्रम चलाते हैं । भेदमें के जो तंतु शिलावल्कमें रहते हैं उनका इनके स्थाणुओंके बहुत से भेद हैं। बिल्कुल योगसंभव उत्पादन भी होता है। दूसरे आंतरिक सादे प्रकारके अर्थात् दो प्रकारके तन्तुओंसे | भेदके भी शिलावल्क होते हैं। मसाले में छोड़ा मिलकर एक संयुक्त तन्तु होने वाले होते हैं। तब जाने याला 'पत्थर फूल' भी एक शिलावल्क है। कड़ी जगहपर काले रंगकी किंचित तह दिखाई | लिटमस नामका एक रंग जो रसायन शास्त्र में पड़ती है। ये उसमें मिलते हैं। कुछ पत्तों के ! होता है वह शिलावल्कसे निकाला जाता है। सदृश होते हैं। उनकी पेशियोपर सरसों सरीखा (१५) कांड शरीरिका-(Characeae ) स्थाणु एक लसदार और चिपकने वाला पदार्थ होता वर्गमें की यह अंतिम जाति । इस वर्गको है। ऊपरके दोनों भेदोंमें दोनों वनस्पतियोंका यह बहुत ही उच्च कोटि की वनस्पति है। यह मिलाप अच्छी तरह से हुआ रहता है। दूसरे बिलकुल हलकी तथा उच्च वनस्पतीकी अपेक्षा अन्य भेदोमें यह मिलाप इतना अच्छा नहीं होता बहुत हो भिन्न होती है। ये मीठे जलमें पाई उन्हे मिश्रस्थाणू कहते हैं। उसके बिल कुल जाती है। इनका रंग हरा होता है और ये सीक मध्य भागमे पाण केशको पेशियाँ होती हैं। उनके की तरह दिखाई देती हैं। मध्य भागमें तना चारों तरफ बुरशीके तन्तु अलग २ होते हैं। इसके रहता है और उसमें करीब २ समान अन्तरपर ऊपर और नीचे वुरक्षी की मोटी २ तह होती हैं। घास के समान कांड होते हैं। प्रत्येक काण्डाग्र ये दोनों बाहर की तहोंसे अधिक मोटी होती हैं ! पर वर्तु लोकार चारों ओर मूल तने की तरह और पेड़की त्वचाके समान होती हैं। ऐसे | किन्तु महीन २ सींककी तरह शास्त्राय फूटती हैं। मिश्र स्थाणुके शिलावल्कके तीन विभाग किये ! इन टेढ़ी शाखाओंमें भी कभी २ और डालियां जाते हैं।-(१) पापुद्रके सदृश । इनके तह पत्थर | फूटती हैं। शाखा और तनेके बीचके बगल के पर पाये जाते हैं । (२) पत्तोंके सदृश । इनका ! अक्षकोणमें और भी एक दो शाखायें फूटती है। श्राकार फैले हुवे पत्ते की तरह होता है और ये बहुत | यह डाल भी तने की तरह अच्छी लंबी होती है। फैलकर पत्थर में चिपके हुवे रहते हैं। इनके काण्डान से निकले हुए तन्तुओंसे यह वनस्पति नीचेके हिस्से मे पतले तंतु होते हैं। इसी कारण जमीन में बिलकुल प्रवेश करती हैं। यह वनस्पति ये पत्थरमें अथवा पेड़की छालसे चिपकी रहती | कभी २ एक फुटसे भी अधिक लंबी होती है। हैं । (३) फलके सदृश । यह तंतुमय अथवा फीते। इसकी लंबाई उन एक अग्रस्थित वर्धमान पेशीसे