पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/४१

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सकता अग्रामद ज्ञानकोश (अ) ३१ अगमुदैयन यह साल पुराने फूलके गुच्छोंपर बिल्लीकी की तरह बहुत प्रचीन जमीनके । सैकड़ो पुकेसर (लम्बे लम्बे धागे जिनका सिरा जड़े मिलती हैं। इससे मालूम होता है कि पहले स्त्री-पुष्पोमें गर्माधान करते हैं। नर- पुष्पोंमें जहाँ और अब भी यह पेड़ पृथ्वीके एक बहुत बड़े हिस्से से फूल निकलता है, पुष्पासन उसी जगह होता है। में पैदा होता है। भारतवर्षमें इस पेड़को बहुत परिकोश पांच छः छोटी छोटी हरी पत्तियोंका प्राचीन कालसे लोग जानते थे और उसी जमाने होता है और उसीमें पुकेसरोका गुच्छा रहता है। से लोगोंको इसके गुण-दोष ज्ञात थे। स्त्री-पुष्पोमें पुष्पासन प्यालीके आकार का होता उपयोगिता-इस पेड़में सबसे अधिक महत्व है और अण्डाशय उसीमें चिपका रहता है। पूर्ण भाग इसकी लकड़ी है। लकड़ी सुन्दर और परिकोशमें चार पत्तियां होती हैं। अंडाशयके भजवून होती है। इसलिये नक्काशीदार दराज-! पाससे बीजांड सीधा ऊपर आता है। इसके बाली सन्दूक और बन्दुकोंके दस्ते बनानेमें इसका । फलमें गूदा या गिरी ऊपर और गुठली भोतरकी बहुत उपयोग होता है। काश्मीर और पंजाबमें ! ओर रहती है। दो सीपोंकी तरह इसका छिलका इस लकड़ी पर पञ्चीकारी और नक्काशी का काम गिरीको ढांके रहता है। बीयामें गिरी रहती है बनाकर बड़ी फैसी चीजें तयार की जाती है। और इसी में अंकुर होता है। धड़ और शाखों के मेलकी जगह जो गाउँ लकड़ोमें इस पेड़के लिये गहरी बलुई चिकनी मिट्टीकी होती हैं. इनकी पहले फ्रांसमें बहुत माँग थी। जरूरत होती है। इसे काफी हवा और सूर्य इस पेड़ की छाल और फल का छिलका स्तंभक प्रकाशकी आवश्यकता होती है। बीजसे ये पेड़ (स्तंभन करनेवाला) होता है। इसलिये उनका उप- पैदा होते हैं। किन्तु खास तौरसे तयार करनेके योग दवाशों में और रंग बनाने में होता है। कच्चे लिये कभी कभी इसका कलम भी लगाते हैं। फलोंका अचार बहुत बढ़िया होता है। कच्चे | बोनेपर पहलेही जाड़ेमें पेड़की हिफाजत काफी फलको गिरी बहुन जायकेदार होती है। फ्रांसमें करनी पड़ती है। बीजसे तयार होनेवाले पेड़ बीस इस गिरीसे बहुत बढ़िया तेल काफी तायदादमें बरस वाद फल देते हैं। एक साल पुरानी डालोंमें निकाला जाता है। प्रखरोट में एक तरहके बड़े फल लगते हैं। इसलिये फलोको तोड़ते समय फलकी भी एक किस्म है, पर उसकी गिरी किसी नई शाखाओं को बचाने की पूरी कोशिश की काममें नहीं आ सकती। किन्तु उसके छिलके | जाती है । जवाहरातके बक्स बनाने के काममै पाते हैं। भारत [ अाधार ग्रंथ----वाट-कामर्शियल प्राडक्ट्स और मैं इस पेड़की छालका उपयोग दवाओं और दन्त- | ब्रिटानिका ] मजन बनानेमें होता है। फल बहुत पुष्ट होनेके अखा-बर्माके पूर्वीय भागमें शान नामक कारण काश्मीरसे अधिक प्रमाणमें बाहर भेजा | राज्य है, उसके पठारोमें बसनेवाली यह एक जाता है। फलसे अच्छा तेल निकलता है और ! जङ्गली जाति है। राज्य भरमें इनकी जनसंख्या छाल चमड़ा कमाने और रंग तयार करने में ली | लगमग २६००० है। इनकी भाषासे यह अनुमान जाती है। इसकी पत्तियाँ जानवरोको खिलाते भी किया जा सकता है कि इनका सम्बन्ध कभी । इसकी एक धन फुट लकड़ी का वजन करीब | तिब्बतसे भी रहा होगा। इनका चीनियोंसे श्रव करीव ४० पौंड होता है। भी घनिष्ट सम्बन्ध है, और कभी कभी उनसे विवाह पेड़ बड़ा होता है और पत्तियाँ गुलावके सम्बन्ध तक हो जाता है। चीनियोंसे ये कुछ पेड़की पत्तीकी तरह । इस पेड़से सुगन्धियुक्त रस अधिक लम्बे होते हैं। इनका रंग भी कुछ काला काफी निकलता है। पत्तोंके गिरने से डालियों में होता है। ये भाँग और अफीमका व्यापार अधिक जो गड़हे हो जाते हैं, काफी गहरे होते हैं । पत्तेकी करते हैं । कुत्तेका मांस भी भोजन करते हैं । ये अपने वगलमे ( यानी पत्तेके नीचे जहाँ वह शाखासे : पूर्वजो तथा प्रेतात्मायोंकी पूजा करते हैं। मृत मिला होता है) एक या अधिक अंकुर फूटते हैं। सम्बन्धियोंका श्राद्ध करते हैं । मृतक गाड़े जाते इसका फूल पपीता या कोहँडेके फूलकी तरह हैं, और उस समय भैसेका बलि दिया जाता है। एकलिंगी होता है। अर्थात् फूल या तो पुकेसर (ई० ग० ५) या स्त्री-केसर युक्त होता है और बहुधा दोनों अगमुदयन-सम्पूर्ण तामिल देशमै यह मेलके फूल एकही पेड़पर दिखायी पड़ते हैं। एक | जाति पायी जाती है। कल्लन् तथा मरवन् ।