अग्निक्रीड़ा ज्ञानकोश (अ) ४१ अमिपुराण पेशवा तथा अन्य उच्चाधिकारी उनपरसे उन्हें शाला, वास्तुशास्त्र, वैद्यकशास्त्र, छन्दशास्त्र, नाट्य- देखते थे। आधुनिक कालमें अन्य आविष्कारौके । शास्त्र काव्य. व्याकरण, तत्वज्ञान. नीतिशास्त्र साथ साथ इस कलामें भी बहुत कुछ सुधार हुश्रा आदि नेक विषय इसमें दिये हुए हैं। पुराणों में है और नई नई चीजे बनने लगी हैं। पेशवाओंके | यह तामस श्रेणीका ग्रंथ समझा जाता है, क्योंकि शासनकालमें महाराष्ट्र देशमें इसका खूब प्रचार सांसारिक विषयों को छोड़कर परमार्थ सम्बन्धी था। सवाई माधवरावके विवाहके उपलक्षमें बातें इसमें बहुत कम अंशोंमें हैं। इसमें किसी आतिशबाज़ीका जो वर्णन मिलता है उसका उल्लेख खास धर्ममार्गका समर्थन नहीं किया गया है, नीचे देते हैं। किन्तु ग्रन्थ देखनेसे यही विदित होता है कि आकाश मण्डल के तारागण-यह श्रातिश-बाज़ी | ग्रन्थनिर्माण-समयमें शैवधर्म ही का जोर रहा आकाशमें जाकर फट जाती थी और इसमें से रङ्ग ! होगा और भन्त्रतन्त्रपर लोगों की विशेष श्रद्धा बिरङ्गे तारे दिखाई देत थे। रही होगी। नारियल के पेड़-इसमें भाग लगाते ही तोपके अानन्दाश्रम ग्रंथावली द्वारा प्रकाशित अग्नि- समान अावाज होती थी और रङ्ग विरङ्गके शाखा- | पुराणमें ३८३ अध्याय और ११४५७ श्लोक हैं। कार तथा सर्पाकार दृश्य देख पड़ते थे। नारद पुराणमें १५००० और मत्स्य पुराणमें १६००० प्रभा-चमक-इसमें सुनहले तथा रुपहले घूमते श्लोक अग्नि पुराणमें बताये गये हैं। नारद पुराण हुए चित्र दिखाई देते थे। में और इस पुराणकी जो विषयानुक्रमणिका इसके अतिरिक्त और भी नाना प्रकार के बाण लिखी है, उसका भी पना अवके अग्नि पुराणमें फूल इत्यादि होने थे। नहीं लगता । बल्लालसेनने भी जिन अवतरणका आजकल इस देशमें हवाई जहाज़, चन्द्रजोत, अग्नि पुराणमें उल्लेख किया है वे सबभी वर्तमान छछुन्दर, साँप, बाण, रङ्गविरङ्गे तारे, फुलझड़ी, अग्नि पुराणमें नहीं मिलते। इन सब बातोसे यह महताबी. सिंघाड़ा, चरखी, अनार तथा लङ्का स्पष्ट होता है कि अग्निपुराणका कुछ भाग लुप्त इत्यादि देखनेमें आती हैं। हो गया है। इसका रचना-काल भी निश्चित करना योरपमें भी आजकल इस सम्बन्धमे बहुतसे कठिन है किन्तु ऐसा अनुमान कर सकते हैं कि नये नये अाविष्कार हुए हैं और वे भारतमें भी अब ६० ५ वीं शताब्दिके पश्चात् और यवनोंके आक्र- भाने लगे है। इसलिये इस देशका श्रातिशबाजी माणके पूर्व इस ग्रंथका संकलन हुआ होगा। का व्यवसाय बहुत धीमा पड़ गया है। यदि श्राधार ग्रंथ--दत्तका अग्निपुराण (वेल्थ आफ विद्वान तथा रसायनशास्त्र वेत्ता इस ओर कुछ इण्डिया सीरीज़); काले का पुराण निरिक्षण । ध्यान दें तो इसका फिरसे पुनरुद्धार हो सकता है। विन्टरनीज़की हिस्ट्री श्राफ संस्कृत लिटरेचर अग्निपुराण-इस पुराणके नामसे ऐसा (German book) ! असन की हिन्दू क्लासि. भास होता है कि इसमें अग्निका विशेष वर्णन कलडिक्शनरी । अग्नि पुराण-आनन्दाश्रम किया होगा, किन्तु यथार्थ में ऐसा नहीं है। श्रावृत्ति । अग्निद्वारा जो विद्यासार वसिष्ठ को प्राप्त हुश्रा इस पुगणमें अनेक विषयोंके समावेश होने था उसी का इसमें मुख्यतः उल्लेख है। पुराणों में । तथा अन्य पुराणोके विस्तारपूर्वक वर्णन होनेसे सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर तथा वंशानु- प्राचीन हिन्दुओ की सामाजिक और राजकीय चारिता-इन्ही पाँचों लक्षणों का बहुधा समावेश व्यवस्थाका अच्छा ज्ञान हो सकता है। इसलिये होता है। इसके अतिरिक्त और भी अनेक विषय | इस ग्रंथका विस्तृत वर्णन दिया जाता है । होते हैं। किन्तु अग्निपुराणमें इन सबका विशेष और उन विषयों का, जिनके प्रति पाठकों महत्व नहीं देख पड़ता। 'परा' तथा 'अपरा की जिज्ञासा अधिक होना सम्भव है, का इन्हीं दोनो विद्याओं पर अधिक विवेचना की अधिक विस्तारसे वर्णन किया गया है। अग्नि गई है। मानव समाजके हितके भी अनेक विषय पुराणमें अनेक शास्त्रों का विवेचन है। भिन्न इसमें भलीभाँति दिये हुए हैं। साधारण रोतिसे भिन्न शास्त्रों के लेखोंके समय अग्नि पुराणका भी इसका निरीक्षण करने पर यह स्पष्ट हो जाता उल्लेख करना पड़ता है, अथवा उसके शास्त्र है कि प्राचीन कालका यह एक विविध-विषयक विवेचनका स्वरूप देना आवश्यक है। इसलिये स्वतन्त्र ज्ञानकोश है। अवतार-चरित्र, रामायण | अग्निपुराणका यथार्थ स्वरूप यहीं देना युक्ति- आदि इतिहास, जगत्का उत्पत्तिविवेचन, ज्योति- संगत होगा। ६
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