पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/९

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" " " " ." (१७) कविराज श्री प्रताप सिंह, हिन्दू विश्वविद्यालय, काशी श्रायुर्वेद (१८) श्रीमती चन्द्रावती लखनपाल एम० ए० वी०टी। समाज शास्त्र, गार्हस्थ्य शास्त्र (१६) श्रीमती महादेवी वर्मा एम० ए. (२०) राय बहादुर पं० तेजशंकर कोचक, बुलन्दशहर कृषिशास्त्र, (२१) राय कृष्ण दास, काशी कला (२२) पं० पूर्णचन्द्र जी त्रिपाठो ज्योतिशाचार्य-तीर्थ डुमराव ज्योतिष फलित सामुद्रिक (२३) रायबहादुर बाबू श्यामसुन्दर दास. पी० ए० हिन्दू विश्वविद्यालय, काशी। (४) प्रो० श्रीधर सिंह, एम० ए० लखनऊ। (२५) डाक्टर पी० एस वर्मा, हिन्दू विश्वविद्यालय काशी । (२६) प्रो० चन्दमौलि शुक्ल (२७) प्रो० रामकुमार वर्मा एलाहाबाद विश्वविद्यालय । (२८) श्रीमती चन्द्रावती त्रिपाठी एम० ए० इलाहाबाद। (२६) श्रीमतो सत्यवतो पाठक एम० ए० एलहाबाद। (३०) श्रीमान् युधिष्ठिर भार्गव, सम्पादक जायाजो प्रताप, ग्वालियर । (३१) बाबू बृजरत्न दास, बी० ए० एल० एल० बी०, बनारस । (३२) पं० राजनाथ पाडे एम० ऐ०, इलाहाबाद । (३३) पं. उमाकान्त पाण्डेय बी० ए०, पल० एल० बी०, बनारस । उपरोक्त विद्वन्मण्डलका विचार करते हुए इस प्रयासके आगामी भागोंकी सफलता तथा सर्वमान्यतापर तो सन्देह किया ही नहीं जा सकता, इस भागका भी विशेषांक शीघही निकाल कर मुख्य मुख्य त्रुटियोकी पूर्ति कर दी जावेगी। ज्ञानकोष क्श है? इसमें क्या रहेगा ? अथवा हिन्दी संसारमें इसकी कितनी . नितान्त आवश्यकता है ? इन विषयों पर महामहोपाध्याय डा० गंगानाथ झा, एम. ए. डी. लिट के 'दो शब्द तथा रायबहादुर डा० हीरालाल, कटनीकी 'प्रारम्भिक सूचना' द्वारा पूर्ण रूप से प्रकाश पड़ चुका है। अतः इसपर फिर कुछ कहनेका प्रयत्न करना व्यर्थ है, किन्तु फिर भी इस ज्ञानकोशकी विशेषताओं तथा ध्येयके विषयमें दो चार शब्द कहना अनुपयुक्त न होगा। २००० चित्र तथा नकशों से युक्त १२००० पृष्ठों ( ३५ भाग) का यह असाधारण ग्रन्थ कदाचित् हिन्दी संसारका ही नहीं, किन्तु देशकी प्रत्येक भाषाका सबसे बृहद्ग्रन्थ होगा, और मराठी इत्यादि ज्ञानकोश की सहायता प्राप्त होने के साथही साथ धुरन्धर विद्वानों द्वारा सम्पादित होने से इसका प्रत्येक लेख अत्यन्त उपयोगी तथा प्रमाणिक होगा। लेखके अत्तमें सन्दर्भ-ग्रन्थोंकी सूची होनेसे तविषयक विशिष्ट ज्ञान प्राप्त करनेमे अत्यन्त सुविधा होगी। अखिल संसारके सम्पूर्ण ग्राचीन तथा अर्वाचीन विषयोंके अतिरिक्त प्राचीन भारतीय तथा वैदिक संस्कृतिपर विशेष प्रकाश डाला गया है। यद्यपि शान-कोश ऐसे विविध-विषयक प्रयत्नमें किसी थिशेष ध्येयको, सम्मुख रखमा सर्वथा उचित नहीं देख पड़ता किन्तु फिर भी कुछ उद्देश्य ऐसे अवश्य हैं जो अपने विश्वव्यापी होने के कारण सर्व-प्रिय तथा सर्वमान्य है ही। इस ज्ञानकोशको सर्वप्रथम