पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/१०२

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1 था। वे जो दरवाजा तोडने पाए थे, इद गिद जमा हो गए। क्सिीने भी नहीं पूछा कि क्या हुअा है । सब चुप थे और मोजेल के नगे शरीर को देख रह थे, जिसपर जगह जगह पराशें पड़ी थी। त्रिलोचन न उसकी वाह हिलाई और आवाज दी, मोजेल माजेल ।' मोजेल ने अपनी बडी बडी यहूदी आखें खोली, जो वीर बहूटी की तरह लाल हो रही थी और मुम्पराई । त्रिलोचन ने अपनी पगडी उतारी और खोलकर उसका नगा शरीर ढक दिया। मोजेल फिर मुस्कराई और प्राख मारकर मुह से खन के बुलबुले छोडती हुई रिलोचन से बोली 'जानो देखो मेरा अण्डरवीयर वहा है कि नहीं। मेरा मतलब है कि वह निलोचन उसका मतलब समझ गया, लेकिन उसन उठना न चाहा। इसपर मोजेल प्रोध से कहा, 'तुम सचमुच सिख हो जानो, देखकर प्रायो।' त्रिलोचन उटकर कृपान कौर के फ्लैट की ओर चला गया। मोजेल ने अपनी धुधली पाखा से अपने आसपास सडे लोगा की ओर देखा और कहा, 'यह मिया भाई है लकिन वहुत दादा विस्म का मैं इसे सिख कहा करती हूं।' त्रिलोचन वापस आ गया । उमने पाखा ही पाखो म माजेल को बना दिया कि कृपाल कौर जा चुकी है । मोजेल ने सतोप की सास ली~लकिन ऐसा करने से बहुत-सा खून उसके मुह से बह निकला और 'डम्इट यह कहकर उसने अपनी रोयेदार क्लाई से अपना मुह पाछा और त्रिलो- चन की ओर दखकर बोली, 'आल राइट डालिगबाई वाई।' त्रिलोचा ने कुछ कहना चाहा, लेकिन शब्द उसके कण्ठ म ही अटक गए। मोजल ने अपने शरीर से निलोचन की पगडी हटाई। 'ले जानो इसको, अपने इस मजहब वो।' और उसकी बाह उसको मजबूत छातियो पर निर्जीव होकर गिर पड़ी। 1 मोजेल /103