पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/१०१

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मैं आ जाऊगी।' एक्दम ऊपर की मजिल से पई प्रादमी घडाधड तीच उतरा नगे और फिर दरवाजे पर पावर उहाने उसे कूटना शुरू कर दिया, जैस वे उसे तोड ही डालेंग। कृपाल कौर की अथी मा और उसका अपाहिज वाप दूसर कमर म पडे कराह रह थे। मोजेल ने कुछ सोचा और वाला को एक हल्का सा झटका देकर निलोचन से कहा, 'सुनो अव मिफ एक ही तरवीव मेरी समझ म पाती है । मैं दरवाजा सोलती है कृपाल कौर के सूसे कण्ठ से चीख निफ्लत निकलते रह गई, 'दरवाजा। मोजेल त्रिलोचन की योर मुह किए कहती रही, 'मैं दरवाजा खोन कर बाहर निकलती हूँ-तुम मेरे पीछे भागना । मैं ऊपर चढ जाऊगा और तुम भी ऊपर चले नाना । ये लोग जो दरवाजा ताड रहे है भव कुछ भूल जाएगे और हमारे पीछे चले पाएगे।' त्रिलोचन न पूछा, 'फिर? मोजेल ने कहा, 'यह तुम्हारी--क्या नाम है इसबा~मौका पाकर निकल जाए । इस देश म इसे कोई कुछ नहीं कहेगा।' त्रिलोचन न जल्दा जत्दो वृपाल को सारी बात समभा दी । मोजेल जोर से चिल्लाई। दरवाजा खोला और धडाम स बाहर लोगा पर जा गिरी । सब बौखला गए । उठकर वह ऊपर सीटियो की ओर लपकी। पिलोचन उसके पीछे भागा। सब एक अोर हट गए । मोजेन अवाधुध सीढिया चढ रही थी-सडाऊ उसके पैरा में थी। वे लोग, जो दरवाजा तोडन की कोशिश कर रहे थे, सभलकर उनके पीछे दोडे । एकाएक माजेला पाव फिसल गया और ऊपर के जीन स वह कुछ इस तरह लुढकी कि हर पथरील जीन स दाराती, लोह के जगले से उलमती नीचे प्रा गिरी-पथरीले पश पर । मिलोचन एक्दम नीचे उतरा। झुक्कर उसन देखा तो उसके नार से खून बह रहा था, मुह से सून बह रहा था काना से पूरा निकल रहा 102/ टोबा टेव सिंह