कि बड़े ऐंटी फिलोजिस्टीन किस्म के आदमी है। आप आज शामको इनके फ्लैट पर जरूर तशरीफ लाइए।' बाबू गोपीनाथ, जो खुदा मालूम क्या सोच रहा था, चौककर बोला, 'हा हा, जरूर तशरीफ लाइए मण्टो साहब ।' फिर सैण्डो स बोला, 'क्या सैण्डा क्या आप कुछ उसका शगल करते हैं।' अदुरहीम सैण्डा न जार से कहकहा लगाया । 'अजी हर किस्म का शगल करते है । तो मण्टा साहब आज शाम का जरूर पाइएगा। मैने भी पीनी शुरु कर दी है इसलिए कि मुफ्त मिलती है।' संण्डा ने मुझे फ्लैट का पता लिखा दिया, जहा मैं अपने वादे के मुता- बिक शाम को छ बजे के करीब पहुच गया। तीन कमरो का साफ-सुथरा फ्लैट था, जिसमे बिलकुल नया फर्नीचर सजा हुअा था । मण्डो और बाबू गोपीनाथ के अलावा बैठक मे दो मद और दो औरतें मौजूद थी जिनस संण्डो ने मुझे मिलाया। एक था गफ्फार साइ, तहमद पहन पजाब का ठेठ साई । गले मे मोट- मोटे दानो की माला । सैण्डो ने उसके बारे मे कहा, 'आप बाबू गोपीनाथ के लीगल एडवाइजर है, मेरा मतलव समझ जाइए आप। हर आदमी जिसकी ना बहती हो, जिसके मुह से राल टपकती हो, पजाब मे खदा को पहुचा हुआ फकीर बन जाता है। ये भी बस पहुचे हुए है या पहुचने वाले है । लाहौर से वावू गापीनाथ के साथ पाए हैं क्योकि इह वहा कोई और वेव- कूफ मिलन की उम्मीद नही थी । यहा आप वावू साब से ऋवन ए के सिगरेट और स्काच ह्विस्की के पेग पीकर दुग्रा करते रहते हैं कि अजाम नक हो। गफ्फार साइ यह सुनकर मुस्कराता रहा। दूसर मद का नाम था गुलाम अली। लम्बा-तडगा जवान, कसरती बदन, मुह पर चेचक के दाग । उसके बार मे सण्डो ने कहा, यह मेरा शागिद है। अपने उस्ताद के नक्शे कदम (पदचिह्ना) पर चल रहा है। लाहौर की एक नामी रण्डी की कुमारी लडकी इसपर आशिक हो गई थी। बडी-वडी कण्टी यूटनिया मिलाई गई इसका फासने के लिए, मगर इसने कहा, 'डू मार डाई । मैं लगोट का पक्का रहूगा।' एव तकिये म बाबू गोपीनाथ | 105
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