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पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/१०६

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सबम मिनाने के बाद संण्डो न पादत के अनुसार मेरी तारीफा के पुल वाधन गुरु कर दिए। मैंने कहा, 'छोटो यार, पापा कुछ और बातें करें। मैण्टो चिल्लाया 'ब्याण, हिस्को एण्ड मोडा। बापू गोपीनाथ, लगायाहवा विस्जे को।' बाबू गोपीनाथ ने जेब म हाथ डालकर मौ सौ के नोटो या एय पुलिंदा निकाला और एक नोट संपदो के हवाले कर दिया। संण्डा न नोट लवर उसकी तरफ गौर से देखा और सडखडावर पहा, 'यो गाड मा मेर रब्बुल पालमीना वह दिन कर पाएगा जव में भी या नोट निकासा पगा। जानो भई गुलाम अली, दो वोतल जानीवापर निस्टिल गोडग स्ट्राग ले प्राप्नो। बोतलें पाई तो सवन पीनी शुरू की । यह शगल दानीन घण्टे तक जारी रहा। इस दौरान मबसे ज्यादा बातें हस्ये मामूल अब्दुरहीम संपडो ने की। पहला गिलाम एष ही साम म सत्म करके वह चिल्लाया, धडन ताना, मण्टो साह्य ह्विस्वी हो तो एपी। गले स उतरकर पट मे इस्लाव जि दावाद' लिसती चली गई। जियो वायू गोपीनाथ जिया।" वान् गापीनाथ चारा खामोश रहा । कभी कभी वह संण्डो की हा म हा मिलादता था। मैंने सोचा इस व्यक्ति भी अपनी कोई राय नहीं दूसरा जा भी यह मान लेता है । उसके अधविश्वास वा मवून गफ्फार साइ मौजूद था। उसे वह वकौल मण्डो, अपना लीगल एडवाइजर बनाकर लाया था। संण्डो वा इमगे रनमल यह मनलव था पि वा गोपीनाथ को उमस श्रद्धा थी। यो भी मुझे बातचीत के दौरान मानूम हुआ कि लाहौर म उसका वक्त पीरो और दरवेगा की मोहवत मे क्टता था। एक चीज मैंन वाम तौर पर नोट की कि वह कुछ खोया-खाया मा था, जैसे कुछ सोच रहा हो । अतएव मैंने उससे एक बार कहा 'पावू गापीनाथ, क्या सोच रहे हैं आप? वह चौंक पडा। 'जी, मैं? मैं कुछ नहीं।' यह कहकर वह मुम्क- राया और जीनत को तरफ एक प्राशिवाना निगाह डाली। इन हसीनो के बार में सोच रहा हूँ। और हम क्या सोच होगी।' बाद गापीनाथ / 107