घडन-तख्ला।' में उसका मतलब समझ गया। थोडी देर गप्पवाजी हाती रही । मैंन नोट किया कि जीनत और मुहम्मद शपीक तूसी की निगाह प्रापस में टकराकर पुछ और भी वह रही हैं। जीनत इम क्ला मे बिलकुल कोरी थी, लेकिन शफीक की निपुणता जीनत की कमियो को छिपाती रही। सरदार दोना की निगाहवाजी को कुछ इस अदाज मे दख रही थी, जैस सलोफे प्रसााडे के बाहर वठकर अपन पट्टा के दाव पच दखते हैं । इस दौरान मे में भी जीनत से काफी बेतकल्लुफ हो गया था। वह मुझे भाई कहती थी, जिसपर मुझे एतराज नही था। अच्छी मिलन- सार तबीयत की औरत थी-कम बोलन वाली सीधी सादी, साफ सुथरी। शफीक स उसकी निगाह्माजी मुझे पसद नही पाई । एक ता उसमे भाडापन था, इसके अलावा कुछ या कहिए कि इस बात का भी उसमे दखल था कि वह मुझ भाई कहती थी। शफीर पोर सैण्डो ठकर बाहर गए तो मैंन शायद यडी निदयता स उससे डाट डपट की जिसस उसकी प्राखा में मोटे मोटे प्रासू पा गए और वह रोती हुई दूसरे कमरे में चली गई । वावू गोपीनाथ भी, जो एक कोने में बैठा हुया हुक्का पी रहा था, उठकर तजी स उसके पीछे चला गया। सरदार ने प्राग्वा ही आवा म उससे कुछ कहा, लेकिन मैं उसरा मतलव न समझा। थाडो दर वाद 'बाबू गोपीनाथ कमरे में बाहर निकला और 'पाइए मण्टो माहब कहकर मुझे अपन साथ अदर ले गया। जीनत पलग पर वठी थी। मैं अदर दाखिल हुअा तो वह दाना हाथो से मुह दापर लेट गई। मैं और याव गोपीनाथ दोना पलग के पास कुसिया पर बैठ गए । वागू गोपीनाथ न वटी गभीरता से कहना शुरू किया, 'मण्टो साहब, मुझे इस औरत से बहुत मुब्बत है । दा बरम से यह मेरे णस है, म हजरत गौस पाजम जीलानी की क्सम खाकर कहता हू कि इसन मुझे कभी शिकायत का मौका नहीं दिया। इसकी दूसरी वहन, मेरा मतलब है, इस पेशे की दूसरी औरत दोनो हाथो से मुभ लूट- कर खाती रही, मगर इमन भी एप पंसा ज्यादा मुभस नहीं लिया। मैं बाबू गोपीनाथ / 113
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