यहते है, मान लेती है। जी चाहा, पास बैठकर दर तक ममभाऊ वि जा कुछ तुम पर रही हा ठीक नहीं है । सण्डा और सरदार अपना उल्लू सीधा करन के लिए तुम्ह बच भी डालेंगे, मगर मैन बुद्ध न यहा । जीनत उक्ता दन भी हद तब बममा उमग और यजान औरत थी । उस वमरत का अपनी जिन्दगी को कुछ पदवीमत मालूम ही नही थी। जिस्म बेचती मगर उममें वचन वाला या कोई अज तो हाता । मुझे बहुत मोपत हाती थी उस दमर । मिगरट स गरार म, मान म,घर से, टेलीफोन म, यहा तब पि उस माफ ग भी जिसपर वह अमर लटी रहती भी उम कादग्लिचस्पी नहीं थी। बाबू गोपीनाथ पूरे एक महीन वाद लौटा । माहिम गया तो वहा पतंट म मोई और ही था। संण्डो और मरदार के मशविर स जीनत न बादरा म एक बगले या ऊपरी हिम्मा किराय पर लिया था । बाबू गोपीनाथ मेर पास ग्राया तो मैंने उस पूरा पता बता दिया । उसन मुझम जीनत के बारे में पूछा । जा कुछ मुझ मालूम था, मैंन कह दिया लकिन यह न कहा कि संण्डा और सरदार उससे पेशा करा रहे है। वार गोपीनाथ इस बार दस हजार रुपय अपन साथ लाया था जो उसन बडी भुग्लिास हासिल किए थे। गुलाम अली और गफ्फार साई को वह लाहौर ही छोड पाया था। टक्सी नीचे खड़ी थी। वार गोपीनाथ अनुरोध किया पि में भी उस माथ लू। लगभग एक धयरे म हम बादरा पहुच गए। पाती हिल पर टक्शी चढ़ रही थी कि सामन तग सडक पर सण्डो दिसाई दिया। बाबू गापी नाथ न जार से पुकारा सण्डो ।' मण्डो न जव वाब गोपीनाथ को दवा ता उसके मुह म सिफ इतना निकना घडन तरता" वाबू गोपीनाथ ने उसस हा प्रामा टमी म उठ जामा और साथ चलो।' लेकिन मण्डा न बहा, 'टैक्मी एक तरफ खडी कोकिए । मुझे आपसे कुछ प्राइवेट बातें करनी हैं। टंक्सी एक तरफ खडी की गई । बाबू गापीनाथ बाहर निकला ता 118/टोबा टेवसिंह
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