पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/११८

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सण्डो उमे कुछ दूर ते गया। देर तक उनमे बातें होती रही। जब सत्म हुई तो बाबू गोपीनाथ प्रवेला टॅक्सी की तरफ पाया। ड्राइवर से उगने यहा, 'वापस ले चलो।' बाबू गोपीनाथ खुश था। हम दादर के पास पहुंचे तो उसने कहा, 'मण्टो साहब, जेना की शादी होन वाली है।' मैं हैरत स पूछा, 'किसम' वायू गोपीनाय ने जवाब दिया, हैदराबाद मिंध का एक दौलतम द जमीदार है । खुदा करे, दोनो खुश रह । यह भी अच्छा है जो मैं ठीक वक्त पर आ पहुचा । जो स्पये मेरे पास हैं, उनमे जेनो का दहेज यन जाएगा। क्या क्या खयान प्रापका? मेर दिमाग में उस वक्त कोई सवाल नही था । मैं सोच रहा था कि यह हैदरावाद सिंध का दौलतमद जमीदार कौन है ? सण्डो और सरदार की कोई जालसाजी तो नही ? लेकिन बाद में इसकी तसदीक हो गई कि वह वास्तव म हैदरावाद का युगहाल जमीदार था जो हैदराबाद सिंध के एक म्यूजिक टीचर की मारफ्त जीनत स मिला था, यह म्यूजिक टीचर जीनत को गाना मिसान की सार कोशिश क्यिा करता था। एक रोज वह अपने मरपरस्त गुज़ाम हुसैन (यह हैदराबाद सिंध क रईस का नाम था) का साथ लेकर पाया । जीनत ने खूब सातिर की और गुलाम हुसन की परमास पर उसने गालिब की गजत नुक्ताची है गमे दिल उसको सुनाए न बने गावर सुनाई । गुलाम हुसैन उसपर मर मिटा । इसका जिक्र म्यूजिक टीचरन जीनत से दिया। सरदार और सैण्टा ने मिलकर मामला पक्या कर दिया, और गादी तय हो गई। बाबू गोपीनाथ खुश था। एक बार सैण्डो के दोस्त की हैमियत से यह जीनत के यहा गया। गुलाम हुमैन से उसकी मुलाकात हुई तो उससे मिलकर बाबू गोपीनाथ की खुशी दूनी हो गई। मुझम उसने कहा 'मण्टो साहब, खूवमूरत, जवान और बडा लायक आदमी है वह। मैंन यहा पाते हुए दातगज बरा के हुजूर जाकर दुग्रा मागी थी, जो कुबूल हुई। भगवान करे, दोनो सुश रह ।' वायू गोपीनाथ | 119