लेक्नि पादमी बडामहानिकारक था।पद्रह वर्षों ग उसने क्सिीसे झगडा- फिसाद नही किया था । पागनखान के जो पुराने नौकर थे वे उसके बारे म इतना जानत थे वि टोबा किसिंह म उसकी काफी जमी थी। अच्छा खाता पीता जमीदार था कि अचानक ही दिमाग उलट गया । उसक सवधी लाह की मोटी मोटो जजीरा मे उसे वाधकर लाए और पागलखाने मे दाखिल करा गए। महीने मे एक बार मुलाकात का वे लोग मात थे और उसकी राजी- सुशी मालूम करके चले जात थे। एक समय तक यह सिलसिला चलता रहा, लेकिन जब पाकिस्तान हि दुस्तान को गडबड शुरू हो गई तो उनका पाना वाद हो गया। उसका नाम विशनसिंह था, मगर सब उसे टोबा टेवसिंह कहते थे । उसे यह बिलकुल मालूम न था कि दिन कौन सा है, महीना कौन सा है या क्तिन साल बीत चुके हैं । लेकिन हर महीन जब उसके सम्बधी उमस मिलने आते थे तो उसे अपने आप पता चल जाता था। अतएव वह दफा- दार से कहना कि उसके मुलाकाती आ रहे हैं । उस दिन वह अच्छी तरह नहाता, बदन पर खूब सातुन घिसता और सिर मे तेल लगाकर क्या करता ! अपन कपडे, जो वह भी इस्तेमाल नहीं करता था निकलवा कर पह्नता और या सज सवरकर मिलने वालो के पास जाता। वे उसम कुछ पूछते तो वह चुप रहता या कभी कभी प्रो पड ती गिडगिड दी, ऍक्स दी बेन्याना दी, मूग दी दाल आव दी लालटेन ।' उसकी एक लड़की थी, जो हर महीने एक अगुल बढती बढती पद्रह वप मे जवान हो गई थी। बिशनसिंह उस पहचानता ही न था। जब वह बच्ची थी तब भी अपने बाप का देखकर रोती थी, जब जवान हुई, तब भी आखो से आसू बहते थे । पाकिस्तान और हिंदुस्तान का रिस्सा शुरू हुआ ता उसने दूसरे पागला में पूछना शुरू किया कि टोबा टेवसिंह कहा है। जब सतोप- जन उत्तर न मिला तो उसकी चिता दिना दिन वढती गई। अब मुला- काती भी नहीं पाते थे। पहले तो उसे अपने पाप पता चल जाता था कि मिलने वाले आ रह हैं पर अव जैस उसके दिल की आवाज भी बद हा कह देता। 126/टावा टैकसिंह
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