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पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/१२७

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वह यहते-कहते रुक गया। विशनसिंह कुछ याद परन लगा 1 'वटी रूपकोर फजलदीन ने रुक रुककर कहा, 'हा हा वह भी ठीकठाक है उनके साथ ही चली गई थी।' विशनसिंह चुप रहा । पजलदीन ने कहना शुरू किया, 'उहोंने मुझसे कहा था कि तुम्हारी राजी खुशी पूछता रहू। अव मैंने सुना है कि तुम हिंदुस्तान जा रहे हो--भाई बलबीरसिंह और भाई रघावासिंह से मेरा सलाम कहना, और बहन प्रमतकोर से भी। भाई वलवीरसिंह से कहना -फजलदीन राजी-खुगी है । दो भूरी भसें जा वे छोड गए थे, उनमे से एक ने क्ट्टा दिया है दूसरी के कट्टी हुई थी, पर वह चौतह दिन की होकर मर गई और मेरे लायक जा खिदमन हो, कहना । मैं हर वक्त तैयार है। और ये तुम्हारे लिए थोडे से मरण्डे लाया है।' विशनसिंह ने मरुण्डो की पोटली लेकर पास खडे सिपाही के हवान कर दी और फजलदीन से पूछा, 'टोबा टेकसिंह कहा है ?' फजलदीन न पाश्चय से कहा, 'कहा है ? वही है, जहा था।' विशनसिंह ने फिर पूछा, 'पाकिस्तान मे या हिदुस्तान में?' 'हिदुस्तान मे नहीं-नही, पाक्स्तिान म।' फजलदीन बौखला-सा गया। बिशनसिंह बडबडाता हुआ चला गया प्रो पड दो गिडगिड दी ऍक्स दी वेध्याना दी मूग दी दाल आव दी पाकिस्तान एण्ड हिंदुस्तान आव दी दुर फिट अदला बदली की तैयारिया पूरी तरह हो चुकी थी। इधर से उधर और उधर से इधर आने वाले पागला की सूचिया पहुच गई थी और अदला-बदली की तारीख निश्चित हो चुकी थी । कडाके का जाडा पड - रहा था जव लाहौर के पागलखाने से हिदू सिख पागला से भरी लारिया पुलिस के सरक्षक दस्त के साथ रवाना हुइ । उनसे सम्बधित अफ्मर भी उनके साथ थे। वाधा की सीमा पर दोनो पार के सुपरिण्टण्डेण्ट एक- दूसरे से मिले और प्रारम्भिक कारवाई खत्म हान के वाद अदला-बदली शुरू हो गई जो रात भर चलती रही। पागला को लारिया से निकालना और उनको दूसरे अफमरो के हवाले " 128/ टोबा टेकसिंह