पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/१२८

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जो करना बडा कठिन काम था। कुछ तो बाहर निकलते ही नहीं थे, निक्लन को तैयार हात, उनको सभालना मुश्किल होता, क्योकि वे इधर- उधर भाग उठते थे। जो नगे थे, उनको कपड़े पहनाए जाते तो वे पाड- कर अपने तन से अलग कर देत । कोई गालिया वक रहा है, काई गा रहा है। भापम मे लड मगर रहे हैं और रो रहे हैं, बिलख रह हैं। वान पडी पाराज भुनाई नहीं देती थी । पागल स्त्रियो का शारगुन अलग था, और सर्दी इतने कडाके की थी कि दात बज रह थे। अधिकतर पागल इम अदला-बदली के पक्ष में नहीं थे, क्योकि यावी समझ म नहीं माना था कि उन्हें अपनी जगह से उखाडकर वहा फेंका जा रहा है। थोडे से वे, जो कुछ सोच समझ सकते थे, पाकिस्तान जिदा- वाद और 'पाकिस्तान मुर्दावाद' के नारे लगा रहे थे। दो तीन बार झगडा हाते होते वना, क्योकि कुछ एक मुमलमानो और सिखा का ये नारे सुनकर तैश प्रा गया था। जव विशनमिह को वारी प्राइ और जव उसे दूसरी ओर भेजन के सम्व ध म अधिकारी लिखत पढत करने लगे तो उसन पूछा, टोबा टक- सिंह कहा है-पाकिस्तान में या हिदुस्तान म सम्बधित अधिकारी सुनकर हसा और बोला, 'पाकिस्तान मे।' यह सुनकर विशनसिंह उछलकर एक तरफ हटा और दोडकर अपने शेप माथियो के पास पहुच गया। पाक्स्तिानी सिपाहियो ने उसे पकड लिया। और दूसरी तरफ ले जान लगे लकिन उसने चलने स इनकार कर दिया 'टावा टेवसिंह यहा है और वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा, 'प्रो पड दी गिडगिड दी, ऍक्म दी बेध्याना दी, मूग दी दाल प्राव टोवा टेकसिंह एण्ड पाकिस्तान !" उसे बहुत समझाया गया, 'दखो, टोवा टेवसिंह अब हिदुस्तान मे चला गया है अगर नहीं गया है तो उम तुरत ही वहा भेज दिया जाएगा, लेकिन वह न माना । जब उसे जबरदस्ती दूसरी ओर ले जाने की कोशिशें ची गई तो वह बीच में एक स्थान पर इस प्रकार अपनी सूजी हुई टागो पर खड़ा हो गया, जैसे अब कोई ताकत उसे वहा मे नही हिला सकेगी। भादमी चूकि अहानिकारक था, इसलिए उसके साथ जबरदस्ती नहीं दोवा टेवसिंह / 129 7