पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/१३३

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दम पूना जाने के लिए तयार हो गया। जिस फिल्म कम्पनी में नौकर था, उसके मालिका से एक मामूली सी बात पर मनमुटाव हो गया और मैंन सोचा कि यह कटुता दूर करने के लिए पूना हा पाऊ । वह भी इमलिए कि वह पास था और मेरे कुछ मित्र वहा रहत थे। मुझे प्रभातनगर जाना था, जहा मेरा फिल्मो का एव पुराना साथी रहता था । स्टेशन से वाहर निक्लन पर मालूम हुप्रा दि वह जगह काफी दूर है, लेकिन तब तर हम तागा ले चुके थे । सुस्त रगतार से चलन वाली चीजो स मेरी तबीयत बहुत घबराता है, लेविन मैं अपन दिल की रजिग को दूर करने के लिए यहा आया था, इसलिए मुझे प्रभातनगर जान की बहुत जल्दी थी। तागा बहुत ही वाहियात विम्म का था, अलीगढ के इक्का से भी ज्यादा वाहियात जिनम हर समय गिरने का खतरा बना रहता है। घोडा प्राग चलता है, और सवारिया पीछे । एक दो गद से अटे वाजारो और सडको को पार करत करत मेरी तबीयत घबरा गई। मैंन अपनी बीवी से मशविरा किया और पूछा कि ऐसी हालत म क्या करना चाहिए । उसन कहा कि धूप तज है । मैंने जो और तागे देखे हैं, वे भी इसी तरह के हैं। अगर इमे छोड दिया तो पैदल चलना होगा जो जाहिर है कि इम सवारी से ज्यादा तकलीफोह है । वात ठीक थी। धूप सचमुच बहुत तेज थी। घोडा एक पगि प्राग वढा होगा कि पास स वैसा ही वाहियात विस्म का तागा गुजरा। मैंने सरसरी तौर पर उधर देखा तभी एक्दम कोई चिल्लाया, प्रोए मण्टो के घोडे । मैं चौक पडा । चडढा था, एक घिसी हुई मेम के साथ । दोना माय साथ जुडकर बठे थ । मेरी पहली प्रतिक्रिया वडी दुखद थी कि चडढे की सौदय प्रियता कहा गई जो एसी लगामी' के साथ बैठा है। उम्र का ठीय अदाज तो मैंने उस समय नही क्यिा था मगर उस स्त्री की भुरिया पाउडर और रूज की तहा म स भी माफ दिखाई दती थी। इतना गाय मेरअप था कि दवन स पाखा को पप्ट होता था। 1 वा पारा माल मगाम-महावरा। 132/टोवा टेवसिंह