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पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/१३५

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नहीं थी । गच पूछिए तो वह पूना मान से ही हक म नहीं थी । उसको यकीन था पि मुझ्या यहा पीने पिलाने वाले दास्त मिल जाएगे । मन सताप दूर परन का बहाना पहले से ही मौजूद है, इसलिए दिन रात उडेगी। मैं तांगेरा उतर गया। छोटा सा प्रटची देस था, वह मैन उठाया और अपनी बीवी म कहा 'चलो।" वह गायद मे तेयरा स भाप गई थी कि हर हालत मे उस मेरा मला मानना होगा, इसलिए उसन कोई हील हुज्जत न वी पोर चुपचाप मेरे साथ चल पडी। वहुत मामूली विस्म का मान था। ऐमा मालूम होता था कि मिलिटी वालो ने टेम्परेरी तौर पर एक छोटा सा वगला बनाया था। युछ दिन उसे इस्तेमाल किया और फिर छोडकर चलते बने। चून और पोच का काम बडा पच्चा था। जगह जगह से पलस्तर खडा हुमा था और घर के भीतर का भाग वैसा ही था, जसाकि एक लापरवाह कुमार का हो सकता है जो फिल्मो का हीरो हो और ऐसी कम्पनी में नौकर हो, जहा महीन की तनरवाह हर तीसरे महीन मिलती हो और वह भी कई किम्तामा मुझे इस बात का पूरा एहसास था कि वह स्त्री, जो वीवी हो, ऐस गदे वातावरण म निश्चय ही परेशानी और घुटन महसूम करेगी। लेकिन मैंन सोचा था कि चडढा आ जाए तो उसके साथ ही प्रभात नगर चलेंगे । वहा जो मेरा फिल्मा का पुराना माथी रहता था, उसकी बीवी और बाल-बच्च भी थे। वहा के वातावरण म मेरी बीवी जैस तस दो तीन दिन बाट सस्ती थी। नौवर भी अजीव बेफिका आदमी था। जब हम उस घर मे पहुचे तो सब दरवाजे खुले थे और वह मौजूद नहीं था। जब वह आया तो उसने हमारी मौजूदगी की और कोई ध्यान न दिया, जैस हम बरसा से वही वैठे थे और इसी तरह वठे रह्न का इरादा किए हुए थे। जब वह कमरे म प्रवेश कर हमे देखे बिना पास से गुजर गया तो मैंने समझा कि कोई मामूली एक्टर है, जो चडढा के साथ रहता है लेकिन जब मैंने उससे नौकर के बारे म पूछताछ की तो मालूम हुआ कि 134/टोबा टेकसिंह ,