पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/१३६

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वही हजरत चडढा साहब के चहते नौकर थे। मुझे और मेरी बीवी दोनो को प्यास लग रही थी। उससे पानी लाने को कहा तो वह गिलास ढूढने लगा। बडी देर के बाद उसने एक टूटा हुआ जग अलमारी के नीचे से निकाला और बडबडाया, 'रात एक दजन गिलास साहब ने मगवाए थे, मालूम नहीं किघर गए।' मैंने उसके हाथ में पकड़े हुए जग की ओर इशारा किया, 'क्या माप 'इसमे तल लेने जा रहे हैं ? 'तेल लेने जाना' बम्बई का एक खास मुहावरा है। मेरी बीवी इसका मतलब न समझी, मगर हस पडी। नौकर वौखला गया, 'नही साहब मैं तलाश कर रहा था कि गिलास कहा है।' मेरी बीवी ने उसको पानी लाने स मना कर दिया। उसने वह टूटा हुमा जग वापस अलमारी के नीचे इस तरह से रखा कि जैसे वही उसकी जगह थी, अगर उसे कही और रख दिया तो सारी व्यवस्था अस्त व्यस्त हो जाएगी। इसके बाद वह या कमरे से बाहर निक्ला, जैसे उसे मालूम था कि हमारे मुह मे क्तिने दात हैं । मैं पलग पर बैठा था जो शायद चडना का था। इससे कुछ दूर हटकर दो पागमसिया थी। उनमे से एक पर मेरी बीवी बैठी पहलू बदल रही थी। काफी देर तक हम दोनो खामोश रह। इतने मे चड्ढा आ गया। वह अकेला था । उसको इस बात का बिलकुल एहसास नही था कि हम उसके मेहमान है और इस लिहाज से उसे हमारी खातिरदारी करनी चाहिए। कमरे मे दाग्विल होते ही उसने मुझसे कहा वेट इज वेट । तो तुम पा गए प्रोल्ड ब्वाय । चलो, जरा स्टूडियो तक हो पाए । तुम साथ होगे तो एडवाम मिलने में आसानी हो जाएगी अाज शाम को 1 मेरी बीवी पर उसकी नजर पड़ी तो वह रुक गया और खिल- सिलाकर हसने लगा।'भाभीजान, कही आपने इस मौलवी तो नही बना दिया?' फिर और जोर से हसा, 'मौलवियो की ऐसी तैसी । उठो मण्टो, भाभीजान यहा वैठती हैं, हम अभी आ जाएगे।' मेरी बीवी जल-मुनकर पहने कोयला थी तो अब बिलकुल राख हो गई थी। मैं उठा और चड्ढा के साथ हो लिया । मुझे मालूम था कि थोडी मम्मी | 135