पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/१५०

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हुई थी । उसने तुरत मेरी बीवी म कहा, हा पल ठीय रहगा । फिर मवयी पार देसकर बोली, माज इह मफर यी थकान भी है ।

हम सबने स तोप थी साम ली । हरीश फिर कुछ दर तक मजेदार बातें की , अत म मुझम कहा, चलो यार, तुम चलो मेर साथ , फिर भरे तीन माथिया की पोर दसा, इनको छोडो सेठ साहब तुम्हारी कहानी सुनना चाहते हैं । __ _ मैंन बीपी की मोर देखा और हरीश से कहा, इसमे इजाजत ले लो ।

मेरी भोली भाली वीवी जाल में फ्म चुकी थी । उसने हरीश स कहा, मैन बम्बई स चलत वक्त इनम वहा भी था कि अपना डाक्मेण्ट वेस साथ ले चलिए लेकिन इ होन कहा, कोई जरूरत नहीं । अव ये पहानी क्या सुनाएग " ___ हरीश न कहा, जबानी सुना दगा । फिर उसन मरी पार या दसा , जैम कह रहा हो कि जल्दी हा कहा ।

मैंन धीमे से यहा हा , एसा हो सकता है ।

चडढे न उप डामे मे अतिम टच दिया , तो भई हम चलते हैं । सौर व तीना सलाम -नमस्त करने चले गए । थोडी दर के बाद मैं और हरीश निकले । प्रभातनगर वे वाहर नाग खडे थे । चडढे न हम दखा और जोर पा नारा लगाया , राजा हरीशच द्र की जय ।

शाम को हमारी महफिल जमी मम्मी के घर ।

यह भी एक काटेज थी - शक्ल सूरन और वनावर मे मईद काटज जमी, मगर बहुत साफ सुथरी जिममे मम्मी के सलीक का पता चलता था । फर्नीचर मामूली था लेकिन जा चीज जहा थी सजी हुई थी । मैंन सोचा था कि मम्मी का घर कोई वेश्यालय होगा , लेकिन उस घर की क्सिी चीज में भी नजरा को ऐसा म देह नहीं होता था । वह वैसा ही शरीफाना , जसा कि एक मध्यम वग के ईमाई का होता है । लेकिन मम्मी की उम्र के मुकाबले म वह कुछ जवान -जवान- सा दिखाई देता था । उमपर वह मकअप नहीं था जो मैंन मम्मी की भुरिया वाले चेहर पर दखा था । जब मम्मी डाइगरम में पाई तो मैंन सोचा कि इद गिद की

मम्मी / 147