असली रूप देखने के लिए न मिफ इच्छुक था, बल्कि उसे खोजता भी रहता था। उसकी बीवी गगादेई उसकी इस किम्म वी बगरिया को देखकर आम तौर पर यह कहा करती थी, 'अभी दुआ खोदा ही नहीं गया और तुम प्यास से वेहाल हो रह हो।' कुछ भी हो, पर उस्ताद मग नये कानून के इतजार म इतना वेचन नही था जितना पि उसे अपनी तबियत के लिहाज मे होना चाहिए था। वह माज नये कानून को देखने के लिए घर से निकला था, ठीय उमी तरह, जस वह गाधी या जवाहरलाल वे जुलूम को देखने के लिए निक लना था। नेताजी वी महानता का अनुमान उस्ताद मगू हमेशा उनके जुलूस हगामा और उनके गले म डाली हुई फूलो की मालाग्रा से किया करता था। अगर बाई नीडर गेंद वे फूला स लदा हो तो उस्ताद मगू के नज- दीक वह बडा आदमी था और जिस नेता ये जुनूस में भीड की वजह से दो-तीन दगे होते होते रह जाते, वह उसकी नजर मे और नौ वडा था। अब नये कानून को वह अपने जेहन के इसी तराजू म तोलना चाहता 'था। प्रनारपली से निकनकर, वह माल रोड की चमकीली सडप पर अपन तागे को धीरे धीर चला रहा था कि मोटरा की दुकान के पास उम छावनी वो एक मवारी मिल गई । किराया तय करने के बाद उसने अपने पोड को चावुप दिखाया और मन में सोचा, 'चला यह भी अच्छा गायद छावनी स ही नये कानून का कुछ पता चल जाय ।' छावनी पहुचकर उस्ताद मगू ने मयारी को उसकी मजिल पर उतार दिया और जेब म सिगरेट नियालयर बायें हाथ की पासिरी दा उगलिया म दवापर सुनगाया और पिछली मीट ये गद्दे पर बैठ गया। जर उम्ताद मगू यो किमी गवारी की तलाश नहीं होती थी या उम दिमी बीता हुई घटना पर गौर करना होता तो वह प्राम तौर पर अगली मीट शेयर पिटनो मोट पर यठ जाता और बड़े इत्मीनान स भपन घोडे को लगाम दायें हाथ ये गिद पेट लिया करता था। ऐमे अरमरा पर उराया घोडा थोडा मा निह्निाने के बाद वही धोमी चाल हुप्रा। नया कानून / 17
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