पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/१७

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चलना शुरु कर देता था, मानो उसे कुछ देर के लिए भाग दौड से छुट्टी मिल गई हो। घोडे की चाल और उस्ताद मगू के दिमाग मे खयालो की ग्रामद बहुत सुस्त थी जिस तरह घोडा धीरे धीरे कदम उठा रहा था उमी तरह उस्ताद मगू के जेहन मे नय कानून के बारे मे नये अनुमान दाखिल हो रहये। वह नये कानून वे आने पर म्यूनिसिपल कमेटी से तागा के नम्बर मिलने के तरीके पर गौर कर रहा था और इम गौर-तलव वात को नये विधान की रोशनी मे देखने की कोशिश कर रहा था। वह इमी सोच- विचार म डूबा था जव उसे ऐसा लगा जसे किसी सवारी ने उसे बुलाया है । पीछे पलटकर देखने पर उसे सडक के उम पार दूर विजली के सम्भे पास एक गोरा सडा नजर आया, जो उमे हाथ के इशारे से बुना रहा था। जैसा कि कहा जा चुका है उस्ताद मगू को गोरा स वेहद नफरत थी। जब उसने अपनी नइ सवारी को गोरे के रूप में देखा तो उसके मन मे नफरत के भाव जाग उठे। पहले तो उसके जी मे आई कि विल- कुल ध्यान न दे और उसका छोडकर चला जाय, पर बाद म उसको खयाल आया कि इनके पसे छाडना भी बेवकूफी है। क्लगी पर जो मुफ्त म साढे चौदह पाने खच कर दिए हैं इनकी जेव ही से वसूल करने चाहिए । चलो चलत हैं पाली सडक पर बडी सफाई मे तागा मोडकर उसने घाडे को चावुक दिपाया और पलक झपकते ही वह बिजली के खम्भे के पास पहुच गया। घोडे की लगाम खीचकर उसने तागा ठहराया पार पिछली सीट पर बैठे बैठे गोरे से पूछा 'साहब बहादुर पहा जाना मागता है। इम सवाल म गजव का तजिया (व्यग्य भरा) अदाज था। साहब बहादुर बहत समय उसका ऊपर का मूछो भरा हाठ नीचे की ओर पिच गया और पास ही गाल की इस तरफ जो मद्धिम सी लकीर नाम के नथुन स ठोडी के ऊपरी सिरे तक चली आ रही थी, एक कारपी के 18 | टोबा टवमिह