पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/१७०

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खूबसूरत बीवी का जिक्र किया । गरीबनवाज ने क्टिी की तत्कालीन आवश्यकता को पूरा करने के लिए दो सौ रुपये कज दिए और रजीतकुमार से उसने कहा, तुम इन वेचारी नडकियो को यो ही भासे न दिया करो ___ हो सकता है कि तुम्हारी नीयत साफ हो , लेकिन लेन के मामले में इनकी नीयत इतनी साफ नहीं होती - कुछ न कुछ द दिया करो । __ मम्मी ने उस जलमे मे रामसिंह को बहुत प्यार किया और सबको मशविरा दिया कि उसे घर वापस जाने लिए कहा जाए । अतएव वही फैसला हुया और दूसरे दिन गरीबनवाज ने उसके टिक्ट का प्रबंध कर दिया । शीरी ने सफर के लिए उसको खाना पकाकर दिया । स्टेशन पर सब उसे छोडने गए । ट्रेन चली तो वे दर तक हाथ हिलाते रहे ।

ये छोटी छोटी बातें मुझे जलसे के दम दिन बाद मालूम हुइ, जब मुझे एक जरूरी काम से पूना जाना पडा । सईदा काटेज मे कोई परिवतन नहीं हुया था । ऐसा मालूम होता था कि वह ऐसा पडाव है, जिसका रग -रूप हजारो काफिलो के ठहरने से भी नही बदलता । वह कुछ ऐसी जगह थी , जो अपनी रिक्तता को स्वय ही भर लेती थी । मैं जिस दिन वहा पहुचा शीरनी बट रही थी । शोरी के एक और लडका हुआ था । वनकतरे के हाथ मे ग्लक्सो का डिब्बा था । उन दिना यह बडी मुश्किल से प्राप्त होता था । अपने बच्चे के लिए उसने कही से दो प्राप्त किए थे । उनमे से एक वह शीरी के नवजात शिशु के लिए ले आया था । चडढा ने प्राखिरी दो लडडू उसके मुह मे ठूसे और कहा, तू ग्लैक्सो का डिब्बा ले आया बडा कमाल क्यिा है तूने अपने साले बाप और अपनी साली बीवी की , देखना हरगिज कोई बात न करना ।

वनकतरे ने बडे भोलेपन के साथ कहा, साले , मैं अब कोई पियेला ह ? वह तो दारू बोला भरती है वंस बाई गाड, मेरी बीवी बड़ी हैण्डसम है । ____ चड्ढे ने इतनी जोर का कहकहा लगाया कि वनकतरे को और कुछ कहने का अवसर न मिला । उसके बाद चड्ढा , गरीवनवाज और रजीत कुमार मेरी ओर मुडे और उस कहानी की बातें शुरू हो गई जो मैं अपन पुरान फिल्मा के साथी के जरिये से वहा के एक प्रोडयूसर के लिए लिख

मम्मी / 167