रहा था । फिर कुछ देर शोरी के नवात लडके का नाम रखा जाता रहा । सैक्डा नाम रखे गए , लेकिन चडढेकोईपसाद न पाया । प्रत मे मैंने कहा कि ज मस्थान अथात सईटा काटेज के नाम पर तडक का नाम मसऊद होना चाहिए । चडढ को पस र नहीं था , लेकिन अस्थायी रूप से उसने स्वीकार कर लिया ।
इस बीच मैंने अनुभव किया कि चडढा, गरोवनवाज और रजीत बुमार तीना को तबीयत कुछ बुझी बुझी सी थी । मैंने सोचा शायद इसका कारण पतमद का मौसम हो , जब आदमी अकारण ही थकावट सी मह सूस करने लगता है । शोरी का या पच्चा भी इस मिथिनता का कारण हो सकता था , लेकिन यह कोई ठोस कारण मालूम नहीं होता था । सन ये करल की ट्रेजडी ? मालूम नहीं, क्या कारण था लेविन मैंने पूरी तरह महसूप किया कि वे सव उदास थे ऊपर स हसत बोलते थे , लेकिन भीतर ही भीतर घुट रहे थे । ___ मैं प्रभातनगर में अपने पुराने फिल्मा के साथी के घर में कहानी लिसता रहा । यह गस्तता पूरे सात दिन तक जारी रही । मुझे बार बार रगाल पाता था कि इस बीच म चड्ढे ने कोई बाधा क्यो नही डाली । वनक्तर भी कही गाया था । रजीतकुमार स मेरे कोई सास सम्बध नहीं थे जो वह मरे पास इतनी दूर पाता । गरीवनवाज के बारे में मैंने सोचा था कि शायद हैदरावाद चला गया हो । और मेरा पुराना फिल्मा का साथी अपनी नई फिल्म की हीराइन स , उस घर म उमरे बडी बडी मुछा वाले पति की मौजूदगी म , इस लडान का दद निश्चय कर रहा था । ___ मैं अपनी कहानी के एक बडे दिलचस्प हिस्म की पटकथा तैयार कर रहा था कि चडढा प्रा टपका और कमर म घुमत ही उसन मुभम पूछा, इस वश्वास का तुमन कुछ वसूल किया है ? " ____ उसका इशारा मेरी कहानी की पोर था , जिसके पारिश्रमिक की दसरी विस्त मैंने दो दिन पहले वसूल की थी । हा दो हजार परसा लिया है ।
कहा है ? यह पहत हुए चड्ढा भैर कोट की ओर बढा । 168 / टोमा टेवसिंह