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पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/१९१

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सुग धी चाहती थी कि अपनी सारी जिदगी ऐस ही किमी सन्ट्रक मे छिपकर गुजार दे जिसके बाहर टूटने वाले फिरत रहें । कभी भी उमको दूर निवाले , ताकि वह भी उनको ढढन की कोशिश करे । यह जिन्दगी , जो वह पाच वरम से बिता रही थी आख मिचौली ही तो थी । कभी वह पिसीका ढढ तेती थी और कभी कोई उमे ढूढ लेता था बस , या ही उसका जीवन बीत रहा था । वह खुश थी , इसलिए कि उसको खुश रहना पडता था । हर रोज रात को कोई न काई भद उमवे चौटे सागौनी पलग पर होता था और सुग वी , जिमको मर्दो को ठीक करने के अनगिनत गुर याद थ इस बात का बार बार निश्चय करने पर भी कि वह उन मों की कोई ऐसी वैसी बात नहीं मानगी और उनके साथ वडे रूखेपन से पेश आएगी हमेशा अपनी भावनाओ की धारा मे वह जाया करती थी और सिफ एक प्यासी औरत रह जाया करती थी ।

हर राज गत को उसका पुराना या नया मुलाकाती उससे कहा परता था , सुग धी । मैं तुझम प्यार करता है । और सुग धो , यह जानते हुए भी कि वह भूठ बोलता है मोम हो जाती थी और ऐसा महसूस करती थी , जसे सचमुच उसस प्यार किया जा रहा है । प्यार, क्तिना मुदर गब्द है । वह चाहती थी , उसको पिघलाकर अपने सारे प्रगो पर मल ले उसकी मालिश कर ताकि यह सार का सारा उसके रिस्म में रच जाए या फिर वह पद उसके प्रदर चली जाए सिमट सिमटकर उसके पर दाखिल हो जाए और ऊपर से ढकना व द पर दे । कभी-- कभी जब प्यार करने लार प्यार किए जाने की इच्छा उसके अटर शिद्दत से उठती तो कई बार उसके मन माता कि अपने पास पडे हए प्रादमी को गोद में लेकर थपथपाना शुरू कर दे और नोरिया देकर उम अपनी गोद म ही सुला दे ।

प्यार कर सक्न की गक्ति उस अदर इतनी ज्यादा थी कि हर उम मद स, जो उसके पाम प्राता था वह प्यार कर सकती थी और फिर उसको निभा सकती थी । अब तक चार मदों मे (जिनकी तस्वीर उसके सामने दीवार पर लटक रही थी ) वह प्यार निभा हो तो रही थी । हर समय यह एहसास उसके दिल म बना रहता था कि वह बहुत अच्छी है ।।

188 / टोबा टवसिंह