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पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/१९४

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निसान दगा देग, इस महीने कागद में तुझे पूना पहाते हो मनीमार्डर पर दूगा हा , क्या नाम है म सोगी या ?

मापो कभी पून म पच भेजा था और मुगपी ने अपना पधा बादपिया था । दोना अच्छी तरह जानत थे , क्या हो रहा है । न सुगधी न माधो म यह महा था , तू यह टर टर पया करता है । एक फूटो पौड़ी भी दी हैम भी तून ? पौरन माधो न य भी सुगधी स पूछा था यह मान तरपाग हा मधाता है, जगवि मैं तुझे युछ देना ही नहीं । दोना भूठे थ, दोना एक मिनट की हुरजिदगी पिता रह थे । लेकिन सुगधी खायो । जिमका अमर सोना पहान को न मिले, यह गिलट दिए हुए गहना पर ही सत्ताप पर लिया करता है ।

उम समय मुगधी की मादी मो रही थी । बिजली का हण्डा, जिसे वह माफ करना भूल गई थी , उसने सिर के ऊपर मटर रहा था । उसकी तज रोगनी उसी मुदी हुई पाखा ये साथ टपरा रही थी , पर यह गहरी नीद सो रही थी ।

दरवाजे पर दस्तक हुई । रात ये दो बजे यह कौन माया था ? सपनो में डूबे हुए सुगपो ये वानो में दस्तक दीपावाज भनभनाहट बन घर पहुची । दरवाजा जव जोर से सटसटाया गया तो वह ौंपकर उठ बैठी । दो मिनी जुना गरायो और दातो को रोखो मे फस हुए मछली के रेगोन उमरे मुह के अदर ऐसा लुप्राव पैदा कर दिया था , जो बेहद धमला और मदार था । धोनी के पल्लू म उसन यह बदबूदार लुभाव साफ किया और पाखें मरने लगी । पलग पर वह अकेली थी । झुक्रर उमन पलग के नीचे देखा तो उसका कुत्ता, मूखी हुई चप्पनी पर मुह रण, सो रहा था और नीद में किसी अनजान चीज को मुह चिढ़ा रहा था । तीता पीठ के बालो म सिर दिए मो रहा था ।

दरवाजे पर फिर दस्तक हुई । सुगधी विस्तर से उठी । उसका सिर दद के मारे फटा जा रहा था । घड़े स पानी का एक डोगा निवालपर उसने कुल्ली की और दूसरा डोगा गटागट पीकर उसने दरवाजे या पट थोडा- सा खोला और कहा, रामलाल

हतर | 191